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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palभार्गव, अहमदाबाद (गुजरात) निवासी एक संवेदनशील और नवोदित शायर हैं, जो ग़ज़ल, नज़्म और शेर के माध्यम से अपनी लेखनी को बयां करते हैं। लेखन भार्गव के लिए केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति का वह सशक्त माध्यम है, जिसके ज़रिए Read More...
भार्गव, अहमदाबाद (गुजरात) निवासी एक संवेदनशील और नवोदित शायर हैं, जो ग़ज़ल, नज़्म और शेर के माध्यम से अपनी लेखनी को बयां करते हैं।
लेखन भार्गव के लिए केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति का वह सशक्त माध्यम है, जिसके ज़रिए वह हर शेर में एक नया सफर तय करते हैं। एक ऐसा सफर जो पाठकों के दिलों तक पहुँचने की ईमानदार कोशिश करता है।
यह पुस्तक उनकी लेखकीय यात्रा की पहली कड़ी है,जहाँ पारंपरिक शायरी की मिठास और आधुनिक सोच की सादगी का एक ख़ूबसूरत संगम झलकता है।
Bhargav, a sensitive and emerging poet from Ahmedabad, Gujarat, expresses his thoughts through ghazals, nazms, and couplets.
For Bhargav, writing is not just a play of words, but a powerful medium of self-expression, through which he embarks on a new journey with every verse—a journey that sincerely attempts to reach the hearts of readers.
This book marks the first chapter of his literary journey, where the sweetness of traditional Urdu poetry meets the simplicity of modern thought in a beautiful harmony.
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दुनिया की क़ैद में ज़िंदगी शुरू होती है और अंत भी उसी क़ैद में हो जाता है। फिर भी हर किसी को महसूस होता रहता है या हर कोई मान लेता है कि वो आज़ाद हैं।
मगर हम उन लोगों में से हैं जिन
दुनिया की क़ैद में ज़िंदगी शुरू होती है और अंत भी उसी क़ैद में हो जाता है। फिर भी हर किसी को महसूस होता रहता है या हर कोई मान लेता है कि वो आज़ाद हैं।
मगर हम उन लोगों में से हैं जिन्हें खुद नहीं पता कि वो आज़ाद हैं या क़ैद में,बस इतना मालूम है कि ज़िंदा हैं।
क्योंकि ये भी मुमकिन है कि जो खुद को आज़ाद समझता है,वो दरअसल हर पल किसी क़ैद में जी रहा हो।
और जो खुद को क़ैद में समझता है,शायद वही सबसे ज़्यादा आज़ाद हो।
दुनिया की क़ैद में ज़िंदगी शुरू होती है और अंत भी उसी क़ैद में हो जाता है। फिर भी हर किसी को महसूस होता रहता है या हर कोई मान लेता है कि वो आज़ाद हैं।
मगर हम उन लोगों में से हैं जिन
दुनिया की क़ैद में ज़िंदगी शुरू होती है और अंत भी उसी क़ैद में हो जाता है। फिर भी हर किसी को महसूस होता रहता है या हर कोई मान लेता है कि वो आज़ाद हैं।
मगर हम उन लोगों में से हैं जिन्हें खुद नहीं पता कि वो आज़ाद हैं या क़ैद में,बस इतना मालूम है कि ज़िंदा हैं।
क्योंकि ये भी मुमकिन है कि जो खुद को आज़ाद समझता है,वो दरअसल हर पल किसी क़ैद में जी रहा हो।
और जो खुद को क़ैद में समझता है,शायद वही सबसे ज़्यादा आज़ाद हो।
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