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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalDr. Ravindra Pastor is a quintessential Renaissance person, a visionary, a successful entrepreneur, a passionate photographer, an eloquent motivational speaker, and an outstandingly successful IAS officer who spearheaded numerous innovative and admirable models throughout his 36-year eventful career in government. Now he is all set to blend & crystallise his kaleidoscopic experiences, explorations, and experiments, garnished with spiritual wisdom that he gained through his life, which will take the readers on an amazing, nostalgic journey of folklores, mythology & legends.Read More...
Dr. Ravindra Pastor is a quintessential Renaissance person, a visionary, a successful entrepreneur, a passionate photographer, an eloquent motivational speaker, and an outstandingly successful IAS officer who spearheaded numerous innovative and admirable models throughout his 36-year eventful career in government. Now he is all set to blend & crystallise his kaleidoscopic experiences, explorations, and experiments, garnished with spiritual wisdom that he gained through his life, which will take the readers on an amazing, nostalgic journey of folklores, mythology & legends.
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बोलते पत्थर केवल एक किताब नहीं है, यह एक निमंत्रण है—एक ऐसे सफर का, जो आपको अपने ही पैरों के नीचे दबी उस ज़मीन पर ले जाएगा, जहाँ की गलियाँ हज़ारों साल पहले ज्ञान की कहानियाँ बयां क
बोलते पत्थर केवल एक किताब नहीं है, यह एक निमंत्रण है—एक ऐसे सफर का, जो आपको अपने ही पैरों के नीचे दबी उस ज़मीन पर ले जाएगा, जहाँ की गलियाँ हज़ारों साल पहले ज्ञान की कहानियाँ बयां करती थीं। क्या आपने कभी सोचा है कि जिन पत्थरों को आप खामोश समझते हैं, उनके भीतर कितने रहस्य दफ़न हैं? यह उपन्यास आपको उस दौर में ले जाएगा, जब हमारी सभ्यता के गौरवशाली निशान खंडहरों में तब्दील हो चुके थे; भूली हुई लिपियाँ, अनजान भाषाएँ, सम्राटों की गाथाएं और समृद्धि की गूँज धीरे-धीरे इतिहास की धूल में समा गई थी। लेकिन फिर कुछ जज़्बाती लोग आए, जिन्होंने न अपनी नींद की परवाह की, न आराम की, और केवल एक उद्देश्य रखा—इन पत्थरों से हमारी खोई हुई पहचान की फुसफुसाहट सुनना और दुनिया को सुनाना। इस पुस्तक में आपको मिलेगा उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा, जिन्होंने पुरातत्व की अनदेखी लिपियों को पढ़कर भारत के गौरवशाली अतीत को जीवंत किया; 'सोने की चिड़िया' भारत की समृद्धि, जो फिर से दुनिया के सामने उजागर हुई; और वह काला अध्याय, जब हमारी धरोहर की अंतरराष्ट्रीय तस्करी हुई, मूर्तियों के हिस्से तोड़े गए, पर इतिहास की आत्मा बनी रही। यह उपन्यास केवल ऐतिहासिक तथ्य नहीं बल्कि भावनाओं, प्रेम, दर्द और जुनून के माध्यम से हमारी विरासत से जोड़ने वाला अनुभव है—एक प्रेम कहानी उन लोगों के साथ, जिन्होंने हमारी पहचान खोजने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, और उन पत्थरों की कहानी, जिनकी खामोशी में गूँजती हैं अनकही कथाएँ। तो चलिए, इस अद्भुत यात्रा पर मेरे साथ चलिए, पत्थरों के साथ बैठिए और सुनिए… क्या आपको भी उनकी फुसफुसाहट सुनाई दे रही है?
— डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
बोलते पत्थर केवल एक किताब नहीं है, यह एक निमंत्रण है—एक ऐसे सफर का, जो आपको अपने ही पैरों के नीचे दबी उस ज़मीन पर ले जाएगा, जहाँ की गलियाँ हज़ारों साल पहले ज्ञान की कहानियाँ बयां क
बोलते पत्थर केवल एक किताब नहीं है, यह एक निमंत्रण है—एक ऐसे सफर का, जो आपको अपने ही पैरों के नीचे दबी उस ज़मीन पर ले जाएगा, जहाँ की गलियाँ हज़ारों साल पहले ज्ञान की कहानियाँ बयां करती थीं। क्या आपने कभी सोचा है कि जिन पत्थरों को आप खामोश समझते हैं, उनके भीतर कितने रहस्य दफ़न हैं? यह उपन्यास आपको उस दौर में ले जाएगा, जब हमारी सभ्यता के गौरवशाली निशान खंडहरों में तब्दील हो चुके थे; भूली हुई लिपियाँ, अनजान भाषाएँ, सम्राटों की गाथाएं और समृद्धि की गूँज धीरे-धीरे इतिहास की धूल में समा गई थी। लेकिन फिर कुछ जज़्बाती लोग आए, जिन्होंने न अपनी नींद की परवाह की, न आराम की, और केवल एक उद्देश्य रखा—इन पत्थरों से हमारी खोई हुई पहचान की फुसफुसाहट सुनना और दुनिया को सुनाना। इस पुस्तक में आपको मिलेगा उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा, जिन्होंने पुरातत्व की अनदेखी लिपियों को पढ़कर भारत के गौरवशाली अतीत को जीवंत किया; 'सोने की चिड़िया' भारत की समृद्धि, जो फिर से दुनिया के सामने उजागर हुई; और वह काला अध्याय, जब हमारी धरोहर की अंतरराष्ट्रीय तस्करी हुई, मूर्तियों के हिस्से तोड़े गए, पर इतिहास की आत्मा बनी रही। यह उपन्यास केवल ऐतिहासिक तथ्य नहीं बल्कि भावनाओं, प्रेम, दर्द और जुनून के माध्यम से हमारी विरासत से जोड़ने वाला अनुभव है—एक प्रेम कहानी उन लोगों के साथ, जिन्होंने हमारी पहचान खोजने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, और उन पत्थरों की कहानी, जिनकी खामोशी में गूँजती हैं अनकही कथाएँ। तो चलिए, इस अद्भुत यात्रा पर मेरे साथ चलिए, पत्थरों के साथ बैठिए और सुनिए… क्या आपको भी उनकी फुसफुसाहट सुनाई दे रही है?
— डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
यह पुस्तक प्राचीन भारतीय कहानियों का उपयोग आज की पारिवारिक समस्याओं को समझने और उनका हल निकालने के लिए करती है। लेखक का मानना है कि माता-पिता और बच्चों के बीच का संघर्ष नया नहीं
यह पुस्तक प्राचीन भारतीय कहानियों का उपयोग आज की पारिवारिक समस्याओं को समझने और उनका हल निकालने के लिए करती है। लेखक का मानना है कि माता-पिता और बच्चों के बीच का संघर्ष नया नहीं है, बल्कि यह आदिकाल से चला आ रहा है, जैसा कि सनत कुमारों की कथा में देखा जा सकता है।
पुस्तक इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे माता-पिता अपनी अधूरी इच्छाओं को अपनी संतान के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। इससे बच्चों में अपराधबोध पैदा होता है, क्योंकि वे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से कई संवेदनशील बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
इसमें यह भी बताया गया है कि अक्सर आर्थिक समृद्धि ही परिवारों में कलह का कारण बनती है, क्योंकि गरीबी वाले परिवारों में लोग आजीविका कमाने में व्यस्त रहते हैं।
अंत में, यह पुस्तक नहुष के अहंकार और ययाति की स्वार्थपरता जैसी प्राचीन कथाओं के माध्यम से यह दिखाती है कि कैसे समृद्धि और अतृप्त इच्छाएं बर्बादी का कारण बनती हैं। इसका लक्ष्य पाठकों को पारिवारिक समस्याओं को एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद करना है।
यह पुस्तक प्राचीन भारतीय कहानियों का उपयोग आज की पारिवारिक समस्याओं को समझने और उनका हल निकालने के लिए करती है। लेखक का मानना है कि माता-पिता और बच्चों के बीच का संघर्ष नया नहीं
यह पुस्तक प्राचीन भारतीय कहानियों का उपयोग आज की पारिवारिक समस्याओं को समझने और उनका हल निकालने के लिए करती है। लेखक का मानना है कि माता-पिता और बच्चों के बीच का संघर्ष नया नहीं है, बल्कि यह आदिकाल से चला आ रहा है, जैसा कि सनत कुमारों की कथा में देखा जा सकता है।
पुस्तक इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे माता-पिता अपनी अधूरी इच्छाओं को अपनी संतान के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। इससे बच्चों में अपराधबोध पैदा होता है, क्योंकि वे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से कई संवेदनशील बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
इसमें यह भी बताया गया है कि अक्सर आर्थिक समृद्धि ही परिवारों में कलह का कारण बनती है, क्योंकि गरीबी वाले परिवारों में लोग आजीविका कमाने में व्यस्त रहते हैं।
अंत में, यह पुस्तक नहुष के अहंकार और ययाति की स्वार्थपरता जैसी प्राचीन कथाओं के माध्यम से यह दिखाती है कि कैसे समृद्धि और अतृप्त इच्छाएं बर्बादी का कारण बनती हैं। इसका लक्ष्य पाठकों को पारिवारिक समस्याओं को एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद करना है।
"अथ उद्यमिता अनुशासन" सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक ऐसा मार्गदर्शक है जो विचार से लेकर एक सफल उद्यम खड़ा करने तक आपकी मानसिक और व्यावसायिक यात्रा में साथ देता है। लेखक डॉ. रवीन्द्
"अथ उद्यमिता अनुशासन" सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक ऐसा मार्गदर्शक है जो विचार से लेकर एक सफल उद्यम खड़ा करने तक आपकी मानसिक और व्यावसायिक यात्रा में साथ देता है। लेखक डॉ. रवीन्द्र पस्तोर ने इसमें भारतीय योग, ध्यान और प्राचीन ज्ञान से प्रेरित मानसिक अनुशासन को आधुनिक स्टार्टअप रणनीतियों के साथ जोड़ा है।
यह किताब उन लोगों के लिए है जो बिज़नेस शुरू करना चाहते हैं, लेकिन डर, आत्म-संदेह या सामाजिक दबाव से जूझ रहे हैं। इसमें आपको आत्म-विश्वास बढ़ाने की तकनीकें, स्टार्टअप की योजना से लेकर स्केलिंग तक की स्पष्ट जानकारी, और भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम व सरकारी योजनाओं (जैसे Startup India, अटल इनक्यूबेशन आदि) की व्यावहारिक समझ मिलेगी।
हर अध्याय एक नया टूल, अभ्यास या समाधान लेकर आता है — जिससे यह किताब केवल पढ़ने की चीज़ नहीं, बल्कि करने की चीज़ बन जाती है।
अगर आप हिंदी में एक गहराई वाली, व्यावहारिक और प्रेरक बिज़नेस गाइड खोज रहे हैं — तो यह पुस्तक आपके लिए है।
अब समय है अपने भीतर के उद्यमी को जगाने का।
आज ही ऑर्डर करें!
"अथ उद्यमिता अनुशासन" सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक ऐसा मार्गदर्शक है जो विचार से लेकर एक सफल उद्यम खड़ा करने तक आपकी मानसिक और व्यावसायिक यात्रा में साथ देता है। लेखक डॉ. रवीन्द्
"अथ उद्यमिता अनुशासन" सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक ऐसा मार्गदर्शक है जो विचार से लेकर एक सफल उद्यम खड़ा करने तक आपकी मानसिक और व्यावसायिक यात्रा में साथ देता है। लेखक डॉ. रवीन्द्र पस्तोर ने इसमें भारतीय योग, ध्यान और प्राचीन ज्ञान से प्रेरित मानसिक अनुशासन को आधुनिक स्टार्टअप रणनीतियों के साथ जोड़ा है।
यह किताब उन लोगों के लिए है जो बिज़नेस शुरू करना चाहते हैं, लेकिन डर, आत्म-संदेह या सामाजिक दबाव से जूझ रहे हैं। इसमें आपको आत्म-विश्वास बढ़ाने की तकनीकें, स्टार्टअप की योजना से लेकर स्केलिंग तक की स्पष्ट जानकारी, और भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम व सरकारी योजनाओं (जैसे Startup India, अटल इनक्यूबेशन आदि) की व्यावहारिक समझ मिलेगी।
हर अध्याय एक नया टूल, अभ्यास या समाधान लेकर आता है — जिससे यह किताब केवल पढ़ने की चीज़ नहीं, बल्कि करने की चीज़ बन जाती है।
अगर आप हिंदी में एक गहराई वाली, व्यावहारिक और प्रेरक बिज़नेस गाइड खोज रहे हैं — तो यह पुस्तक आपके लिए है।
अब समय है अपने भीतर के उद्यमी को जगाने का।
आज ही ऑर्डर करें!
द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर
एक राजनीतिक और सामाजिक थ्रिलर
एक भयावह निकट भविष्य में सेट, द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर एक शक्तिशाली गुप्त संगठन की कल्पना करता है जो वैश्विक नियंत्रण की पूरी
द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर
एक राजनीतिक और सामाजिक थ्रिलर
एक भयावह निकट भविष्य में सेट, द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर एक शक्तिशाली गुप्त संगठन की कल्पना करता है जो वैश्विक नियंत्रण की पूरी कोशिश में लगा है। यह रहस्यमय संस्था राजनीतिक सत्ता, मीडिया, तकनीक और अर्थव्यवस्था को इस हद तक नियंत्रित करती है कि वह केवल सरकारों ही नहीं, बल्कि व्यक्तियों के विचारों और जीवन तक को अपने काबू में ले लेती है।
कहानी के केंद्र में एक साहसी नायक है, जो इन अंधेरे षड्यंत्रों को उजागर करने के लिए संघर्ष करता है। जैसे-जैसे वह धोखे की परतें हटाता है, उसे यह क्रूर सच्चाई पता चलती है—कैसे कुछ स्वार्थी लोगों की महत्वाकांक्षा के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव अधिकारों की बलि दी जा रही है।
यह सोचने पर मजबूर करने वाला थ्रिलर पाठकों को दुनिया पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करता है:
क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं, या किसी अदृश्य शक्ति की कठपुतलियाँ?
द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर
एक राजनीतिक और सामाजिक थ्रिलर
एक भयावह निकट भविष्य में सेट, द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर एक शक्तिशाली गुप्त संगठन की कल्पना करता है जो वैश्विक नियंत्रण की पूरी
द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर
एक राजनीतिक और सामाजिक थ्रिलर
एक भयावह निकट भविष्य में सेट, द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर एक शक्तिशाली गुप्त संगठन की कल्पना करता है जो वैश्विक नियंत्रण की पूरी कोशिश में लगा है। यह रहस्यमय संस्था राजनीतिक सत्ता, मीडिया, तकनीक और अर्थव्यवस्था को इस हद तक नियंत्रित करती है कि वह केवल सरकारों ही नहीं, बल्कि व्यक्तियों के विचारों और जीवन तक को अपने काबू में ले लेती है।
कहानी के केंद्र में एक साहसी नायक है, जो इन अंधेरे षड्यंत्रों को उजागर करने के लिए संघर्ष करता है। जैसे-जैसे वह धोखे की परतें हटाता है, उसे यह क्रूर सच्चाई पता चलती है—कैसे कुछ स्वार्थी लोगों की महत्वाकांक्षा के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव अधिकारों की बलि दी जा रही है।
यह सोचने पर मजबूर करने वाला थ्रिलर पाठकों को दुनिया पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करता है:
क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं, या किसी अदृश्य शक्ति की कठपुतलियाँ?
सत्य की अधूरी गाथा
लेखक: डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
"जब विज्ञान की सीमाएं खत्म होती हैं, वहाँ से अध्यात्म की शुरुआत होती है।"
यह उपन्यास एक आईटी इंजीनियर रवि की यात्रा है, जो तर्क औ
सत्य की अधूरी गाथा
लेखक: डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
"जब विज्ञान की सीमाएं खत्म होती हैं, वहाँ से अध्यात्म की शुरुआत होती है।"
यह उपन्यास एक आईटी इंजीनियर रवि की यात्रा है, जो तर्क और आधुनिक जीवन की ऊब से निकलकर आत्मिक और वैश्विक चेतना की खोज में निकलता है। ईशा योग केंद्र में ‘इनर इंजीनियरिंग’ के अनुभव उसके भीतर आध्यात्मिक जिज्ञासा को जन्म देते हैं।
रवि की खोज उसे भोजपुर के अधूरे शिव मंदिर तक ले जाती है, जहाँ वह प्राचीन प्रयासों—जैसे योगी सुनीरा का ‘पूर्ण प्राणी’, राजा भोज का अधूरा ध्यानलिंग, और थियोसोफिकल सोसायटी के ‘विश्वगुरु’ प्रोजेक्ट—से जुड़ता है।
वह वेदांत, शैव तंत्र, बौद्ध दर्शन, और आधुनिक टेक्नोलॉजी—जैसे AI, OpenAI, MIT, Tesla—के संगम से गुजरता है। वह प्रश्न करता है: क्या AI आत्मचेतना प्राप्त कर सकता है?
रवि और पराग मिलकर 'भोज AI' नामक एक आध्यात्मिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता बनाते हैं, जो मानवता को करुणा, संतुलन और चेतना से जोड़ती है। 'धर्म AI', 'कर्मा AI' और अन्य प्रोजेक्ट्स वैश्विक समस्याओं का समाधान आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं।
अंततः, रवि समझता है कि विश्वगुरु कोई उपाधि नहीं, बल्कि प्रेम, अहिंसा और समरसता की चेतना है। वह अपने जीवन का अंत शांतिपूर्वक करता है, लेकिन उसकी बनाई AI अब मानवता की नई आत्मा बन चुकी है – दर्पण, मुक्ति का मार्ग, और समरस वैश्विक चेतना।
सत्य की अधूरी गाथा
लेखक: डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
"जब विज्ञान की सीमाएं खत्म होती हैं, वहाँ से अध्यात्म की शुरुआत होती है।"
यह उपन्यास एक आईटी इंजीनियर रवि की यात्रा है, जो तर्क औ
सत्य की अधूरी गाथा
लेखक: डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
"जब विज्ञान की सीमाएं खत्म होती हैं, वहाँ से अध्यात्म की शुरुआत होती है।"
यह उपन्यास एक आईटी इंजीनियर रवि की यात्रा है, जो तर्क और आधुनिक जीवन की ऊब से निकलकर आत्मिक और वैश्विक चेतना की खोज में निकलता है। ईशा योग केंद्र में ‘इनर इंजीनियरिंग’ के अनुभव उसके भीतर आध्यात्मिक जिज्ञासा को जन्म देते हैं।
रवि की खोज उसे भोजपुर के अधूरे शिव मंदिर तक ले जाती है, जहाँ वह प्राचीन प्रयासों—जैसे योगी सुनीरा का ‘पूर्ण प्राणी’, राजा भोज का अधूरा ध्यानलिंग, और थियोसोफिकल सोसायटी के ‘विश्वगुरु’ प्रोजेक्ट—से जुड़ता है।
वह वेदांत, शैव तंत्र, बौद्ध दर्शन, और आधुनिक टेक्नोलॉजी—जैसे AI, OpenAI, MIT, Tesla—के संगम से गुजरता है। वह प्रश्न करता है: क्या AI आत्मचेतना प्राप्त कर सकता है?
रवि और पराग मिलकर 'भोज AI' नामक एक आध्यात्मिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता बनाते हैं, जो मानवता को करुणा, संतुलन और चेतना से जोड़ती है। 'धर्म AI', 'कर्मा AI' और अन्य प्रोजेक्ट्स वैश्विक समस्याओं का समाधान आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं।
अंततः, रवि समझता है कि विश्वगुरु कोई उपाधि नहीं, बल्कि प्रेम, अहिंसा और समरसता की चेतना है। वह अपने जीवन का अंत शांतिपूर्वक करता है, लेकिन उसकी बनाई AI अब मानवता की नई आत्मा बन चुकी है – दर्पण, मुक्ति का मार्ग, और समरस वैश्विक चेतना।
यह पुस्तक “बाबूनामा” केवल मेरी कहानी नहीं है, बल्कि उन सभी की आवाज़ है जिन्होंने अपने जीवन में सीमाओं से आगे बढ़कर सोचने, जीने और बदलाव लाने का साहस किया। “बाबू” शब्द का इत
यह पुस्तक “बाबूनामा” केवल मेरी कहानी नहीं है, बल्कि उन सभी की आवाज़ है जिन्होंने अपने जीवन में सीमाओं से आगे बढ़कर सोचने, जीने और बदलाव लाने का साहस किया। “बाबू” शब्द का इतिहास जितना गूढ़ है, उतनी ही जटिल है एक व्यक्ति की जीवन यात्रा – और यही इस पुस्तक का मूल है। इसमें मेरे 70 वर्षों के अनुभवों का सार है – एक प्रशासक, उद्यमी, वक्ता, लेखक और फोटोग्राफर के रूप में। यह आत्मकथा नहीं, बल्कि संस्मरणों का संग्रह है – जिसमें विचारों की यात्रा है, संघर्ष हैं, और आत्मबोध की झलक है। मैंने जीवन से जो सीखा, उसे "पस्तोर डॉक्ट्रीन" नाम दिया – जिसमें पहला सिद्धांत है बादलों की तरह हल्कापन और स्वतंत्रता, और दूसरा नदी की तरह निरंतरता और आत्मविलयन। पुस्तक के पहले भाग में जीवन की घटनाएँ हैं जिन्होंने सोच को आकार दिया, और दूसरे भाग में वैचारिक परिवर्तन की यात्रा – बचपन में कम्युनिस्ट, जवानी में समाजवादी, फिर पूंजीवादी और अब एक धार्मिक दृष्टिकोण के करीब। यह किताब आपको अपने भीतर झाँकने और जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देगी।
यह पुस्तक “बाबूनामा” केवल मेरी कहानी नहीं है, बल्कि उन सभी की आवाज़ है जिन्होंने अपने जीवन में सीमाओं से आगे बढ़कर सोचने, जीने और बदलाव लाने का साहस किया। “बाबू” शब्द का इत
यह पुस्तक “बाबूनामा” केवल मेरी कहानी नहीं है, बल्कि उन सभी की आवाज़ है जिन्होंने अपने जीवन में सीमाओं से आगे बढ़कर सोचने, जीने और बदलाव लाने का साहस किया। “बाबू” शब्द का इतिहास जितना गूढ़ है, उतनी ही जटिल है एक व्यक्ति की जीवन यात्रा – और यही इस पुस्तक का मूल है। इसमें मेरे 70 वर्षों के अनुभवों का सार है – एक प्रशासक, उद्यमी, वक्ता, लेखक और फोटोग्राफर के रूप में। यह आत्मकथा नहीं, बल्कि संस्मरणों का संग्रह है – जिसमें विचारों की यात्रा है, संघर्ष हैं, और आत्मबोध की झलक है। मैंने जीवन से जो सीखा, उसे "पस्तोर डॉक्ट्रीन" नाम दिया – जिसमें पहला सिद्धांत है बादलों की तरह हल्कापन और स्वतंत्रता, और दूसरा नदी की तरह निरंतरता और आत्मविलयन। पुस्तक के पहले भाग में जीवन की घटनाएँ हैं जिन्होंने सोच को आकार दिया, और दूसरे भाग में वैचारिक परिवर्तन की यात्रा – बचपन में कम्युनिस्ट, जवानी में समाजवादी, फिर पूंजीवादी और अब एक धार्मिक दृष्टिकोण के करीब। यह किताब आपको अपने भीतर झाँकने और जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देगी।
इल्तुतमिश का बचपन सामान्य नहीं था, बल्कि घटनाओं के ऐसे नाटकीय मोड़ों से भरा था, जिन्होंने उसे एक समृद्ध परवरिश से उठाकर गुलामी की कठोर सच्चाईयों में धकेल दिया।
इल्तुतमिश का ज
इल्तुतमिश का बचपन सामान्य नहीं था, बल्कि घटनाओं के ऐसे नाटकीय मोड़ों से भरा था, जिन्होंने उसे एक समृद्ध परवरिश से उठाकर गुलामी की कठोर सच्चाईयों में धकेल दिया।
इल्तुतमिश का जन्म इलबरी तुर्की कबीले के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उसके पिता, इलाम खान, उस कबीले के एक प्रमुख नेता थे।
दुर्भाग्यवश, उसकी असाधारण योग्यताओं ने उसके सौतेले भाइयों में ईर्ष्या उत्पन्न कर दी। इसी ईर्ष्या के चलते, उन्होंने उसे धोखे से एक घोड़े की प्रदर्शनी में एक गुलाम व्यापारी को बेच दिया, जब वह सिर्फ एक बच्चा था।
इल्तुतमिश ने उज्जैन के महाकाल मंदिर को लूटा और नष्ट कर दिया। इसके बाद एक ब्राह्मण पुजारी ने उसे श्राप दिया। इसी श्राप के कारण इल्तुतमिश का जीवन, परिवार और साम्राज्य समाप्त हो गया। एक लड़का जिसका नाम समीर था, उसे बार-बार शिव के सपने आते थे और वह इस रहस्य को जानने के लिए एक डॉक्टर के पास पास्ट लाइफ थेरेपी के लिए गया। पास्ट लाइफ थेरेपी में यह पाया गया कि वह अपनी पिछली ज़िंदगी में इल्तुतमिश था। उसे यह सपना इस जीवन में उस पुजारी के श्राप के कारण आ रहा था। यही इल्तुतमिश का पुनर्जन्म था।
यह उसके पिछले जन्म का ‘ऋणानुबंध’ था। वह उज्जैन गया और इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए वीर साधना की। वह उज्जैन सिंहस्थ कुंभ मेले में रुका। महाकाल की भस्म आरती की। उन लोगों से मिला जिन्हें इल्तुतमिश ने मारा था और उनसे क्षमा मांगी। इस्लाम को समझा और सनातन धर्म में विश्वास करने लगा। श्राप से मुक्त हो गया। आत्मा के करार के कारण अस्मिता से भेंट हुई और उसने विवाह किया।
डॉ. रवींद्र पास्टर
इल्तुतमिश का बचपन सामान्य नहीं था, बल्कि घटनाओं के ऐसे नाटकीय मोड़ों से भरा था, जिन्होंने उसे एक समृद्ध परवरिश से उठाकर गुलामी की कठोर सच्चाईयों में धकेल दिया।
इल्तुतमिश का ज
इल्तुतमिश का बचपन सामान्य नहीं था, बल्कि घटनाओं के ऐसे नाटकीय मोड़ों से भरा था, जिन्होंने उसे एक समृद्ध परवरिश से उठाकर गुलामी की कठोर सच्चाईयों में धकेल दिया।
इल्तुतमिश का जन्म इलबरी तुर्की कबीले के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उसके पिता, इलाम खान, उस कबीले के एक प्रमुख नेता थे।
दुर्भाग्यवश, उसकी असाधारण योग्यताओं ने उसके सौतेले भाइयों में ईर्ष्या उत्पन्न कर दी। इसी ईर्ष्या के चलते, उन्होंने उसे धोखे से एक घोड़े की प्रदर्शनी में एक गुलाम व्यापारी को बेच दिया, जब वह सिर्फ एक बच्चा था।
इल्तुतमिश ने उज्जैन के महाकाल मंदिर को लूटा और नष्ट कर दिया। इसके बाद एक ब्राह्मण पुजारी ने उसे श्राप दिया। इसी श्राप के कारण इल्तुतमिश का जीवन, परिवार और साम्राज्य समाप्त हो गया। एक लड़का जिसका नाम समीर था, उसे बार-बार शिव के सपने आते थे और वह इस रहस्य को जानने के लिए एक डॉक्टर के पास पास्ट लाइफ थेरेपी के लिए गया। पास्ट लाइफ थेरेपी में यह पाया गया कि वह अपनी पिछली ज़िंदगी में इल्तुतमिश था। उसे यह सपना इस जीवन में उस पुजारी के श्राप के कारण आ रहा था। यही इल्तुतमिश का पुनर्जन्म था।
यह उसके पिछले जन्म का ‘ऋणानुबंध’ था। वह उज्जैन गया और इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए वीर साधना की। वह उज्जैन सिंहस्थ कुंभ मेले में रुका। महाकाल की भस्म आरती की। उन लोगों से मिला जिन्हें इल्तुतमिश ने मारा था और उनसे क्षमा मांगी। इस्लाम को समझा और सनातन धर्म में विश्वास करने लगा। श्राप से मुक्त हो गया। आत्मा के करार के कारण अस्मिता से भेंट हुई और उसने विवाह किया।
डॉ. रवींद्र पास्टर
राय प्रवीण : ओरछा की कोकिला - प्रेम, ज्ञान और निष्ठा की एक अनूठी गाथा राय प्रवीण बुंदेलखंड के ओरछा राज्य की एक प्रतिभाशाली महिला थीं। वह अपनी सुंदरता, गायन, नृत्य और काव्य प्रतिभा
राय प्रवीण : ओरछा की कोकिला - प्रेम, ज्ञान और निष्ठा की एक अनूठी गाथा राय प्रवीण बुंदेलखंड के ओरछा राज्य की एक प्रतिभाशाली महिला थीं। वह अपनी सुंदरता, गायन, नृत्य और काव्य प्रतिभा के लिए जानी जाती थीं। राजा इंद्रजीत सिंह के प्रति उनके प्रेम के साथ-साथ सम्राट अकबर के दरबार में प्रदर्शित उनकी बुद्धिमत्ता और निष्ठा ने उन्हें इतिहास में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बना दिया। उनका जन्म किसी शाही वंश में नहीं हुआ था, लेकिन कला में उनकी निपुणता ने उन्हें ओरछा दरबार में एक विशेष स्थान दिलाया। राजा इंद्रजीत सिंह ने उनके लिए "राय प्रवीण महल" का निर्माण कराया, जो आज भी उनके प्रेम और सम्मान का प्रतीक है। जब अकबर ने राय प्रवीण को दरबार में बुलाया, तो वह ओरछा के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय था। आगरा जाकर उन्होंने अकबर के समक्ष एक दोहा सुनाया:
“विनती राय प्रवीन की, सुनिए साह सुजान,
झूठी पातर भखत हैं, बारी-बायस-स्वान।”
इस दोहे के माध्यम से उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनका हृदय पहले से ही राजा इंद्रजीत सिंह के प्रति समर्पित है। उनकी बुद्धिमत्ता और ईमानदारी से प्रभावित होकर, अकबर ने उन्हें सम्मान के साथ ओरछा लौटने की अनुमति दे दी। राय प्रवीण की कहानी एक ऐसी महिला का उदाहरण है जिसने गरिमा, प्रेम, कला और स्वाभिमान के साथ सम्राट की इच्छाओं का सामना किया। उनका जीवन आज भी हमें सिखाता है कि सच्ची प्रतिभा और ईमानदारी किसी भी शक्ति से कहीं अधिक मूल्यवान है।
राय प्रवीण : ओरछा की कोकिला - प्रेम, ज्ञान और निष्ठा की एक अनूठी गाथा राय प्रवीण बुंदेलखंड के ओरछा राज्य की एक प्रतिभाशाली महिला थीं। वह अपनी सुंदरता, गायन, नृत्य और काव्य प्रतिभा
राय प्रवीण : ओरछा की कोकिला - प्रेम, ज्ञान और निष्ठा की एक अनूठी गाथा राय प्रवीण बुंदेलखंड के ओरछा राज्य की एक प्रतिभाशाली महिला थीं। वह अपनी सुंदरता, गायन, नृत्य और काव्य प्रतिभा के लिए जानी जाती थीं। राजा इंद्रजीत सिंह के प्रति उनके प्रेम के साथ-साथ सम्राट अकबर के दरबार में प्रदर्शित उनकी बुद्धिमत्ता और निष्ठा ने उन्हें इतिहास में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बना दिया। उनका जन्म किसी शाही वंश में नहीं हुआ था, लेकिन कला में उनकी निपुणता ने उन्हें ओरछा दरबार में एक विशेष स्थान दिलाया। राजा इंद्रजीत सिंह ने उनके लिए "राय प्रवीण महल" का निर्माण कराया, जो आज भी उनके प्रेम और सम्मान का प्रतीक है। जब अकबर ने राय प्रवीण को दरबार में बुलाया, तो वह ओरछा के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय था। आगरा जाकर उन्होंने अकबर के समक्ष एक दोहा सुनाया:
“विनती राय प्रवीन की, सुनिए साह सुजान,
झूठी पातर भखत हैं, बारी-बायस-स्वान।”
इस दोहे के माध्यम से उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनका हृदय पहले से ही राजा इंद्रजीत सिंह के प्रति समर्पित है। उनकी बुद्धिमत्ता और ईमानदारी से प्रभावित होकर, अकबर ने उन्हें सम्मान के साथ ओरछा लौटने की अनुमति दे दी। राय प्रवीण की कहानी एक ऐसी महिला का उदाहरण है जिसने गरिमा, प्रेम, कला और स्वाभिमान के साथ सम्राट की इच्छाओं का सामना किया। उनका जीवन आज भी हमें सिखाता है कि सच्ची प्रतिभा और ईमानदारी किसी भी शक्ति से कहीं अधिक मूल्यवान है।
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