Experience reading like never before
Read in your favourite format - print, digital or both. The choice is yours.
Track the shipping status of your print orders.
Discuss with other readersSign in to continue reading.
After passing 12th from Jawahar Navodaya Vidyalaya, kept pursuing various hobbies and turning them into profession. Graduate in Hindi, Masters in History, Political Science, and Sociology. Currently pursuing MA (English). Hobbies - Poetry-writing, Cycling, Independent Teaching, Sketching and Playing Musical instruments in leisure.Read More...
After passing 12th from Jawahar Navodaya Vidyalaya, kept pursuing various hobbies and turning them into profession.
Graduate in Hindi, Masters in History, Political Science, and Sociology. Currently pursuing MA (English).
Hobbies - Poetry-writing, Cycling, Independent Teaching, Sketching and Playing Musical instruments in leisure.
Read Less...
“कड़वा जीवन, कड़वे छंद” समाज के सामने रखा गया एक आईना है। इसकी पंक्तियाँ मौन, लैंगिक विषमता और अंधानुकरण को भेदकर असुविधाजनक सत्यों से सामना कराती हैं।
कुछ रचनाएँ निजी अनुभव
“कड़वा जीवन, कड़वे छंद” समाज के सामने रखा गया एक आईना है। इसकी पंक्तियाँ मौन, लैंगिक विषमता और अंधानुकरण को भेदकर असुविधाजनक सत्यों से सामना कराती हैं।
कुछ रचनाएँ निजी अनुभवों से उपजी हैं, तो कुछ सामाजिक प्रश्नों को उजागर करती हैं। परंपरा और परिवर्तन का तनाव बार-बार उभरता है। 'ग्राम-स्मृति' और 'गाँव ढूँढ रहा था' गाँव की मासूमियत की याद दिलाती हैं, जबकि 'शुभ तिलक', 'छद्म व्यापार' और 'संस्कार के ठेकेदार' दहेज, पितृसत्ता और दोहरे मानदंडों पर प्रहार करती हैं।
'कलम नहीं चिंगारी' शोषण के विरुद्ध सत्य का साहस दिखाती है, और 'हिंसा करने में खोट नहीं' अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की अनिवार्यता को स्पष्ट करती है।
'पुरुष' कविता लैंगिकता और पहचान की पड़ताल करते हुए विशेषाधिकार और मौन पीड़ाओं दोनों को रेखांकित करती है।
'सौदा नहीं किया' और 'मैं और मेरा अंदाज़' सिद्धांतों पर अडिग रहने का स्वर हैं।
'खोने की कसक' और 'मेरे जाने के बाद' शोक को, जबकि 'छठ महापर्व' और 'बारात की एक झलक' सांस्कृतिक रंगों को प्रस्तुत करती हैं। 'कृष्ण की प्रतीक्षा' पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से समकालीन न्याय की मांग करती है।
यह संकलन सामाजिक टिप्पणी, सांस्कृतिक स्मृति और व्यक्तिगत दर्शन का संगम है - निडर, संवेदनशील और लयात्मक। यह उन सभी के लिए है जो साहित्य को विचार और परिवर्तन की चिंगारी मानते हैं।
“कड़वा जीवन, कड़वे छंद” समाज के सामने रखा गया एक आईना है। इसकी पंक्तियाँ मौन, लैंगिक विषमता और अंधानुकरण को भेदकर असुविधाजनक सत्यों से सामना कराती हैं।
कुछ रचनाएँ निजी अनुभव
“कड़वा जीवन, कड़वे छंद” समाज के सामने रखा गया एक आईना है। इसकी पंक्तियाँ मौन, लैंगिक विषमता और अंधानुकरण को भेदकर असुविधाजनक सत्यों से सामना कराती हैं।
कुछ रचनाएँ निजी अनुभवों से उपजी हैं, तो कुछ सामाजिक प्रश्नों को उजागर करती हैं। परंपरा और परिवर्तन का तनाव बार-बार उभरता है। 'ग्राम-स्मृति' और 'गाँव ढूँढ रहा था' गाँव की मासूमियत की याद दिलाती हैं, जबकि 'शुभ तिलक', 'छद्म व्यापार' और 'संस्कार के ठेकेदार' दहेज, पितृसत्ता और दोहरे मानदंडों पर प्रहार करती हैं।
'कलम नहीं चिंगारी' शोषण के विरुद्ध सत्य का साहस दिखाती है, और 'हिंसा करने में खोट नहीं' अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की अनिवार्यता को स्पष्ट करती है।
'पुरुष' कविता लैंगिकता और पहचान की पड़ताल करते हुए विशेषाधिकार और मौन पीड़ाओं दोनों को रेखांकित करती है।
'सौदा नहीं किया' और 'मैं और मेरा अंदाज़' सिद्धांतों पर अडिग रहने का स्वर हैं।
'खोने की कसक' और 'मेरे जाने के बाद' शोक को, जबकि 'छठ महापर्व' और 'बारात की एक झलक' सांस्कृतिक रंगों को प्रस्तुत करती हैं। 'कृष्ण की प्रतीक्षा' पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से समकालीन न्याय की मांग करती है।
यह संकलन सामाजिक टिप्पणी, सांस्कृतिक स्मृति और व्यक्तिगत दर्शन का संगम है - निडर, संवेदनशील और लयात्मक। यह उन सभी के लिए है जो साहित्य को विचार और परिवर्तन की चिंगारी मानते हैं।
Are you sure you want to close this?
You might lose all unsaved changes.
India
Malaysia
Singapore
UAE
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.