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लॉकतंत्र” कला काव्य और साहित्य रचना अनुरागियों के लिए एक सुखद रस अनुभूति लिए, तमाम घरों के भीतर के निशब्द भावों को शब्द देने का प्रयास है | दरअसल जब परतंत्र से स्वतंत्र, राजतंत्
लॉकतंत्र” कला काव्य और साहित्य रचना अनुरागियों के लिए एक सुखद रस अनुभूति लिए, तमाम घरों के भीतर के निशब्द भावों को शब्द देने का प्रयास है | दरअसल जब परतंत्र से स्वतंत्र, राजतंत्र से लोकतंत्र होने का रक्तरंजित इतिहास वर्तमान के पन्नों पर उतर आया हो | तब एक बार पलटकर देखना मज़बूरी हो जाता है |
जो याद दिलाए की- कैसे ‘खोकर अनेकों चिराग-ओ-चमन, हुआ है स्वतंत्र हमारा ये वतन | जहां, कोना कोना मासूमों के खून से अँट गया, कैसे धर्म के आधार हमारा देश बँट गया | माना, जो खो दिया उसे पाया नहीं जा सकता लेकिन जो पास है, उसे संवारा जा सकता है | देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों की हम से यही तो ख्वाहिश रही होगी की हम, हों इंसान नाकि शेर हों, शूरवीर दिलेर हों | आदर करें बड़ों का, छोटों से दुलार | स्वहित ऊपर देशहित, सर्वहित रत रहें नित | हो प्राणों से भी प्यारा हमें हमारा हिंदोस्तान |
अर्थात हमारे हिंदुस्तान के महान सपूत हमें जो स्वतंत्र लोकतंत्र सौंपकर गए हैं उसे अक्षुण बनाए रखना ही हमारी जिम्मदारी है । जब देश परतंत्रता की दिशा में मोड़ दिया जा रहा हो । कभी नोटबंदी कभी तालाबंदी की तरफ धकेल दिया जा रहा हो । तब स्वतंत्र लोकतंत्र के जनतंत्र बनने की कहां कोई उम्मीद बचती है ? उस लोकतंत्र को ‘लॉकतंत्र’ बनते कहां देर लगती है ? लेकिन ख़ाक कर देने की लाख़ साजिशों पर भी भारी होती है एक कोशिश । जो सोए नागरिकों को नींद से जगा दे । स्वतंत्र रहे मेरा मुल्क इन कोशिशों में लगा दे ।
सो एक बार “ना इस दल, ना उस दल के, ना , बस, अपने भारत वतन के” हो, पढ़कर देखिए | विश्वास है आप भी इसे लोकतंत्र को ‘लॉकतंत्र’ नहीं बनने देंगे
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गोधुली से पूर्व ही आसमां में धूल का गुब्बार था। लेकिन सिद्धांत था कि उसका कोई अता-पता ही नहीं था। इससे ज्यादा बदनसी Read More...
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