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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalMr. Jagnandan Tyagi is an Indian author whose debut book [The Mashal of Justice] is a wonderful start to his literary journey. He has a deep passion for writing stories, and his works are connected to the realities of society, culture and life. His writings reflect real experiences and the world around him, making his readers easily relatable. Mr. Tyagi was born in Muzaffarnagar, Uttar Pradesh. He completed his engineering in 1973 and then worked as a General Manager in a Public Sector Undertaking. After his retirement, he has been involved in social work and always believes in growing and leaRead More...
Mr. Jagnandan Tyagi is an Indian author whose debut book [The Mashal of Justice] is a wonderful start to his literary journey. He has a deep passion for writing stories, and his works are connected to the realities of society, culture and life. His writings reflect real experiences and the world around him, making his readers easily relatable.
Mr. Tyagi was born in Muzaffarnagar, Uttar Pradesh. He completed his engineering in 1973 and then worked as a General Manager in a Public Sector Undertaking. After his retirement, he has been involved in social work and always believes in growing and learning.
Despite working in the technical field, his love for literature never diminished. His inclination towards writing was driven by the desire to express a deeper understanding of society, human emotions and life. His debut book beautifully reflects these aspects.
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“एक फैसला जो देश की तकदीर बदल सकता है... लेकिन क्या वह खुद को बदलने से रोक पाएगा?"
एक ईमानदार न्यायाधीश, जिसकी हर फैसला चट्टान की तरह अडिग रहा है, अब अपने जीवन के सबसे कठिन निर्णय क
“एक फैसला जो देश की तकदीर बदल सकता है... लेकिन क्या वह खुद को बदलने से रोक पाएगा?"
एक ईमानदार न्यायाधीश, जिसकी हर फैसला चट्टान की तरह अडिग रहा है, अब अपने जीवन के सबसे कठिन निर्णय के मोड़ पर खड़ा है । सत्य और न्याय की रक्षा में पूरी ज़िंदगी समर्पित करने वाला यह व्यक्ति अब न केवल राजनीतिक दबाव बल्कि अपने ही परिवार की परीक्षा का सामना कर रहा है । जिस नैतिकता पर उसे गर्व था, वही अब उसकी सबसे कठिन कसौटी बन चुकी है ।
जब वह चुनावी धांधली को उजागर करता है, तो उसका फैसला सत्ता के गलियारों में भूचाल ला देता है । भ्रष्ट नेता उसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगते हैं । लेकिन सबसे गहरा धोखा बाहर से नहीं, बल्कि उसके अपने घर से आता है—जिस परिवार की रक्षा के लिए उसने हमेशा लड़ाई लड़ी, वही अब उसे रिश्वत स्वीकार करने और सत्ता से समझौता करने के लिए मजबूर कर रहा है ।
अब, व्यवस्था उसे देश के सर्वोच्च पद का प्रस्ताव देती है—एक शर्त पर: उसे अपने सिद्धांतों को त्यागना होगा। चारों ओर से बढ़ते दबाव—राजनीति, सत्ता तंत्र और अपने परिवार—के बीच उसे निर्णय लेना होगा ।
क्या वह इस अग्निपरीक्षा में अडिग रह पाएगा? क्या वह अपने आदर्शों की रक्षा करेगा, या फिर यह भी सत्ता के नैतिकता पर विजय की एक और कहानी बनकर रह जाएगी?
“एक फैसला जो न सिर्फ देश, बल्कि उसकी आत्मा की तकदीर बदल सकता है… क्या वह झुकेगा, टूटेगा, या इतिहास में अपनी पहचान अमर करेगा?"
“एक फैसला जो देश की तकदीर बदल सकता है... लेकिन क्या वह खुद को बदलने से रोक पाएगा?"
एक ईमानदार न्यायाधीश, जिसकी हर फैसला चट्टान की तरह अडिग रहा है, अब अपने जीवन के सबसे कठिन निर्णय क
“एक फैसला जो देश की तकदीर बदल सकता है... लेकिन क्या वह खुद को बदलने से रोक पाएगा?"
एक ईमानदार न्यायाधीश, जिसकी हर फैसला चट्टान की तरह अडिग रहा है, अब अपने जीवन के सबसे कठिन निर्णय के मोड़ पर खड़ा है । सत्य और न्याय की रक्षा में पूरी ज़िंदगी समर्पित करने वाला यह व्यक्ति अब न केवल राजनीतिक दबाव बल्कि अपने ही परिवार की परीक्षा का सामना कर रहा है । जिस नैतिकता पर उसे गर्व था, वही अब उसकी सबसे कठिन कसौटी बन चुकी है ।
जब वह चुनावी धांधली को उजागर करता है, तो उसका फैसला सत्ता के गलियारों में भूचाल ला देता है । भ्रष्ट नेता उसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगते हैं । लेकिन सबसे गहरा धोखा बाहर से नहीं, बल्कि उसके अपने घर से आता है—जिस परिवार की रक्षा के लिए उसने हमेशा लड़ाई लड़ी, वही अब उसे रिश्वत स्वीकार करने और सत्ता से समझौता करने के लिए मजबूर कर रहा है ।
अब, व्यवस्था उसे देश के सर्वोच्च पद का प्रस्ताव देती है—एक शर्त पर: उसे अपने सिद्धांतों को त्यागना होगा। चारों ओर से बढ़ते दबाव—राजनीति, सत्ता तंत्र और अपने परिवार—के बीच उसे निर्णय लेना होगा ।
क्या वह इस अग्निपरीक्षा में अडिग रह पाएगा? क्या वह अपने आदर्शों की रक्षा करेगा, या फिर यह भी सत्ता के नैतिकता पर विजय की एक और कहानी बनकर रह जाएगी?
“एक फैसला जो न सिर्फ देश, बल्कि उसकी आत्मा की तकदीर बदल सकता है… क्या वह झुकेगा, टूटेगा, या इतिहास में अपनी पहचान अमर करेगा?"
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