इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य भारत की विज्ञानिक विरासत से लोगों को अवगत करना है। भारत मे विज्ञान का जन्म हमारे ऋषियों के मुक्त चिंतन से हुआ। हमारे ऋषियों की श्रीष्टि एवं नक्षत्रों का अवलोकन और चिंतन ने ज्योतिष शास्त्र को जन्म दिया। हमारे ऋषियों का मत रहा है की विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक है। इन दोनो के समन्वय से ही जीवन का पर्दुभाव होता है। यही कारण है की वेद उपनिषद् दर्शन सभी मे विज्ञान और तकनीकी सोच का विवरण मिलता है। प्राचीन काल मे महर्श्रि बृगु, भारद्वाज एवं कणाद ने विज्ञान की नीव डाली। चिकित्सा मे ऋषि धन्वंत्री, शुश्रुत एवं चरक के अमूल्य योगदान का इस पुस्तक मे विवरण किया है। श्री नागार्जुन, वराहमिहीर और आर्यभट्ट की वैज्ञानिक खोज भारतीय विज्ञान के जागृत उदाहरण हैं।
मध्य कालीन युग मे मुसलमानो के आक्रमण के कारण भारतीय वैज्ञानिक परम्परा के विकास मे रूकावट आई परंतु प्राचीन भारतीय विज्ञान पर आधारित ग्रंथो के अरबी फ़ारसी अनुवाद भी हुए। इसके परीणाम स्वरूप भारतीय वैज्ञानिक परम्परा दूर देशों तक पहूची और नया रूप लिया।
मुगल शासन के बाद अँग्रेज़ी शासन स्थापित हुआ और भारतीय विज्ञान मे एक नयी चेतना आई। अब भारत आज़ाद हो गया है और हमारे वैज्ञानिक सूर्य मंडल की गहराइयों से लेकर अंतरिक्ष मे लंबी छलाँग लगा रहे हैं।
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