आज के इस दौर में जब हम चाहत की बात करते हैं तो लड़का लड़की उस रिलेशनशिप के बारे में समझ जाते जिसमे वो सब अपने को एक दूसरे को सौंप देते हैं उन्हें पता होता है की मेरा भविष्य में इससे कोई वास्ता नहीं लेकिन वो ऐसा करते है बात उस दिन की है जब कॉलेज से हॉस्टल लौट रहा था तो मैंने देखा की कुछ लड़के आपस में ककिसी लड़की को लेकर बात कर रहे थे और वो भी कुछ चारित्रिक उपहास कर रहे थे लेकिन मैंने उस लड़की उस लड़के के साथ एकांत में भी देखा जहाँ कोई आ जा न सके तो मेरा इस मोहब्बत जैसे शब्द शर्म सी लगने लगी
हमारा युवा जाने किस ओर जा कर दिशा भ्रमित हो गया है अगर हम, कहे की केवल लड़के दोषित हैं तो ऐसा नहीं है हमारी लड़किया भी बराबर के दोषी हैं हमारी संस्कृति तो केवल चुनाव में ही नज़र आती है बाकि तो पब क्लब और डांस बार में नीलम सी हो रही है मैंने भले घर की लड़कियों को अजीव गरीब कृत्य करते देखा की मेरा सामाजिक चल चलन से भरोसा ही उठ गया
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