जो कहा नहीं गया – लफ़्ज़ों से परे, तुमने भी जिया
कुछ कहानियाँ ख़ामोशियों में ज़िंदा रहती हैं। कुछ सच्चाइयाँ शब्दों के बीच की खामोशी में साँस लेती हैं।
यह संग्रह 91 कविताओं का है, जो जीवन के हर रंग और हर अहसास को समेटता है—कभी छोटी तो कभी लंबी कविताएँ, कहीं व्यंग्य की तीक्ष्णता तो कहीं ग़ज़लों की नज़ाकत। यह विविधता मिलकर भावनाओं का ऐसा ताना-बाना बुनती है जो पाठकों को अपना-सा लगता है और हमेशा याद रह जाता है।
जो कहा नहीं गया सिर्फ़ एक कविता-संग्रह नहीं, बल्कि दिल का आईना है। यह अनकहे जज़्बातों, अधूरी बातों और उन अहसासों की यात्रा है जिन्हें शब्दों में बाँध पाना आसान नहीं। हर कविता एक टुकड़ा है—चाहत का, संघर्ष का, तलाश का—जो मोहब्बत, विरह, उम्मीद और आत्मबोध की अनगिनत तस्वीरें उकेरता है।
हर पन्ना कहता है,“तुम अकेले नहीं हो।”
हर शेर याद दिलाता है: नर्मी में भी ताक़त है, टूटन में भी ख़ूबसूरती है, और अपने सच को स्वीकारने में ही असली साहस है।
चाहे आप हिंदी साहित्य के प्रेमी हों, सुकून के तलाशगर, या कोई ऐसा जिसने अपने दिल में अनकहे शब्द सँजोए हों—यह किताब आपके लिए एक साथी, एक हमराज़ और एक सच्चा दोस्त साबित होगी।
क्योंकि कभी-कभी, जो कह नहीं पाते… वही हमें सबसे गहराई से जोड़ देता है।