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Jyotir Maath / ज्योतिर्मठ Jagadguru Shankaracharya /जगद्गुरु शंकराचार्य

Author Name: Pt. Janardan Rai Nagar | Format: Hardcover | Genre : Religion & Spirituality | Other Details

पण्डित जनार्दन राय द्वारा रचित वृहत् उपन्यास ‘‘जगद्गुरू शंकराचार्य’’ के 10 भागों में से अन्तिम चरण की ओर अग्रसित ‘‘ज्योतिर्मठ’’ अत्यधिक महत्वपूर्ण कड़ी है। इस पुस्तक में पांचरात्र सम्प्रदाय द्वारा विरोध कर बद्रीनाथ के समीप ज्योतिर्मठ की स्थापना कथावस्तु का प्रमुख सूत्र है। वल्लभी और वाह्लीक में जैन आचार्यों तथा उज्जयनी में भट्ट भास्कर के साथ शास्त्रार्थ जहां दार्शनिक तर्क पद्धति का सजीव चित्रण है, वहीं भट्ट भास्कर और उनकी पत्नी, राजेश्वर सुधन्वा और रानी अर्पणा के संवाद उपन्यास को सरसता प्रदान करते हैं। इसी एक उपन्यास के पढ़ने मात्र से भारत की सभी प्रमुख विचार धाराओं का ज्ञान पाठक को हो जाता है। इस उपन्यास के साथ अद्वैत की अविरल, अनवरत, अथक यात्रा के अन्तिम चरण की समाप्ति हुई। लेखक का दर्शन धारा प्रवाह अपने लक्ष्य कर पहुंच कर हिमालय में प्रतिध्वनित हो गया और शंकर कह उठे- .... यह मठ अथर्ववेद का स्थान होगा। देवाधिदेव इस मठ के देव होंगे- थे; हैं; यह ज्योतिर्मय भारत है। इस ज्योति मठ का आधारभूत वाक्य होगा- ‘अयमात्मा ब्रह्म’। यह मैं, आत्मा, ब्रह्म हूं- न मैं मुक्ति; न मैं शास्त्र, न मैं गुरू; चिदैव देहस्तु, चिदेव लोकानि भूतानि, चिदिन्द्रियाणी, कर्ता चिदन्तः करणम् चिदेव, चिदेव सत्यम् परमात्म रूपम्।

जगद्गुरू की शब्द ध्वनियां सब के मन में गूंजती हैं- ‘‘अयमात्मा ब्रह्म’’

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पं. जनार्दन राय नागर

पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। पं. नागर की सतत तपस्या के परिणाम स्वरूप इस संस्था की  उत्तरोत्तर प्रगति हुई वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है। 

शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित  दस उपन्यासों की श्रृंखला है, चार हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’  के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके है। चार गद्य-गीत संग्रह, नागर की कहानियां शीर्षक से दो कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके नाटक ‘आचार्य चाणक्य’, पतित का स्वर्ग’, ‘उदा हत्यारा’, ‘जीवन का सत्य’, अत्यन्त चर्चित रहे तथा मंचित भी हुए।

पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया। ‘मुधमती’, ‘स्वर मंगला’, ‘नखलिस्तान’, ‘बालहित’, ‘कल्कि’, समाज शिक्षण’, ‘शोध पत्रिका’, ‘वसुन्धरा’, ‘जन मंगल’, ‘जन सन्देश’ व ‘अरावली’ आदि पत्रिकाएं उनकी कीर्ति पताकाएं हैं।

राजस्थान साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राज्य में साहित्यिक उन्नयन व मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह की। वे केन्द्रीय साहित्य अकादमी, हिन्दी सलाहकार समिति (रेल्वे), केन्द्रीय प्रौढ़ शिक्षा सलाहकार समिति आदि के मनोनीत सदस्य रहे। विधानसभा में मावली क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें ‘नेहरू साक्षरता पुरस्कार’ व ‘महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन पुरस्कार’ सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए। इस यशस्वी व्यक्तित्व का 15 अगस्त, 1997 को उदयपुर में निधन हुआ।

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