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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palमनीषी पण्डित श्री जनार्दन राइ नागर द्वारा रचित 'राम-राज्य' ग्रन्थावली पाँच उपन्यासों का संकलन है - 'हनुमान', 'सुग्रीव', 'भारत-शत्रुघ्न', 'सीता-राम' एवं 'राम-लक्ष्मण'। इनकी विशेषता है कि पाँचों राम कथा की श्रंखला में स्वतंत्र कृतियां हैं तथा राम के जीवन को प्रभावित करने वाले विभिन्न व्यक्तित्वों का अद्भुद दर्शन करवाती हैं।
'राम- लक्ष्मण' उपन्यास भाईयों के परस्पर प्रेम, त्याग एवं कर्त्तव्यों को प्रदर्शित करता है। समयोचित विवेकपूर्ण दृष्टि के साथ समर्पित भावमय भातृत्व भाव का अनूठा वर्णन पाठकों को भाव विभोर कर देता है। लक्ष्मण का राम के प्रति समर्पण भाई के प्रति निष्ठा के साथ-साथ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए रहा - "मेरा युद्ध श्री राम के नाम का है। वानर जाति के लिए है, आर्य संस्कृति और वैदिक वर्णाश्रम धर्म के लिए है।" पक्तियां दृष्टव्य हैं।
प्रस्तुत उपन्यास इसी प्रकार के रोचक संवादों से पाठकों को प्रभावित करेंगे। डॉ अनन्त भटनागर के अनुसार "चिन्तन-दर्शन से जुड़े लम्बे कथन हों या भावुक प्रसंग दोनों में भाषा का लालित्य आकर्षक है।" वर्तमान में प्रकाशित साहित्य से भिन्न प्रकृति का होने के कारण पाठकों के लिए यह अत्यधिक रूचिकर है।
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Your review has been deleted and won’t appear on the book anymore.पं. जनार्दन राय नागर
पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है।
शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित दस उपन्यासों की श्रृंखला है, चार हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’ के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया।
राजस्थान साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राज्य में साहित्यिक उन्नयन व मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह की। वे केन्द्रीय साहित्य अकादमी, हिन्दी सलाहकार समिति (रेल्वे), केन्द्रीय प्रौढ़ शिक्षा सलाहकार समिति आदि के मनोनीत सदस्य रहे। विधानसभा में मावली क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें ‘नेहरू साक्षरता पुरस्कार’ व ‘महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन पुरस्कार’ सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए। इस यशस्वी व्यक्तित्व का 15 अगस्त, 1997 को उदयपुर में निधन हुआ।
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