मनीषी पण्डित श्री जनार्दन राइ नागर द्वारा रचित 'राम-राज्य' ग्रन्थावली पाँच उपन्यासों का संकलन है - 'हनुमान', 'सुग्रीव', 'भारत-शत्रुघ्न', 'सीता-राम' एवं 'राम-लक्ष्मण'। इनकी विशेषता है कि पाँचों राम कथा की श्रंखला में स्वतंत्र कृतियां हैं तथा राम के जीवन को प्रभावित करने वाले विभिन्न व्यक्तित्वों का अद्भुद दर्शन करवाती हैं।
'राम- लक्ष्मण' उपन्यास भाईयों के परस्पर प्रेम, त्याग एवं कर्त्तव्यों को प्रदर्शित करता है। समयोचित विवेकपूर्ण दृष्टि के साथ समर्पित भावमय भातृत्व भाव का अनूठा वर्णन पाठकों को भाव विभोर कर देता है। लक्ष्मण का राम के प्रति समर्पण भाई के प्रति निष्ठा के साथ-साथ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए रहा - "मेरा युद्ध श्री राम के नाम का है। वानर जाति के लिए है, आर्य संस्कृति और वैदिक वर्णाश्रम धर्म के लिए है।" पक्तियां दृष्टव्य हैं।
प्रस्तुत उपन्यास इसी प्रकार के रोचक संवादों से पाठकों को प्रभावित करेंगे। डॉ अनन्त भटनागर के अनुसार "चिन्तन-दर्शन से जुड़े लम्बे कथन हों या भावुक प्रसंग दोनों में भाषा का लालित्य आकर्षक है।" वर्तमान में प्रकाशित साहित्य से भिन्न प्रकृति का होने के कारण पाठकों के लिए यह अत्यधिक रूचिकर है।
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