पं. जनार्दन राय नागर द्वारा सृजित ‘राम-राज्य’ उपन्यास की श्रृंखला में ‘सीता-राम’ उपन्यास भारतीय संस्कृति के आदर्श नायक राम तथा उनकी पत्नी सीता के प्रमुख जीवन प्रसंगों का अद्भुत वर्णन है। उनके द्वारा रचित ‘भरत’, ‘हनुमान’, ‘सुग्रीव’ एवं ‘राम-लक्ष्मण’ की भांति यह उपन्यास भी इतनी स्वाभाविकता लिए है कि समस्त पात्र सजीव एवं कथानक के अनुकूल रोचक हैं तथा गम्भीरता लिए हुए हैं।
सम्पूर्ण उपन्यास में सीता एवं राम अपनी भूमिका में अत्यधिक स्वाभाविकता लिए हुए अपने मन के अन्तर्द्वन्द्वों से जूझते दिखाई देते हैं। सीता वनवासी राम के प्रति इतनी स्वाभाविक हो जाती है कि राजा राम की भूमिका से विचलित होती रहती है। दूसरी ओर राजा-राम का मन सीता के प्रति मोम सा करूण किन्तु आर्य वंश की राज परम्परा के अनुकूल अत्यधिक कठोर हो जाता है। कुल मिला कर तात्कालिक परिस्थितियों को जीवन्त करता हुआ यह उपन्यास पाठकों के लिए अत्यधिक रूचिकर बन पड़ा है।
उपन्यास का शिल्प, भाषा व शब्द सौन्दर्य आकर्षक है।