इस उपन्यास में सुग्रीव एक धीर-गम्भीर चिन्तक के रूप में दर्शाये गये हैं। वानर संस्कृति का प्रतीक ‘‘सुग्रीव उपन्यास’’ के प्रारम्भ में असहाय, भयभीत, ईर्षालु एवं राज्यलिप्सा से भरा व्यक्तित्व बाद में जाकर धीर, गम्भीर एवं विवेकशील व्यक्तित्व बन जाता है। वह समस्त उपन्यास में देव संस्कृति का समर्थक रहा है। इसी कारण बालि और रावण की मैत्री उसकी एक मात्र चिन्ता रही है। उसे भय है कि रावण सम्पूर्ण भू खण्ड को अपने अधिकार में ले लेगा एवं वानर राज्य ही समाप्त कर देगा। इसलिए उसका एक उद्देश्य है- वानर राज्य की सुरक्षा तथा निरन्तर उत्कर्ष वानर अपनी भोगवादी संस्कृति त्याग कर सत्य के प्रकाश की ओर बढ़ सके।
‘हनुमान’ उपन्यास की भाँति ही लेखक ने राक्षस, मानव एवं वानर संस्कृति का विशद् विवेचन करने के साथ सुग्रीव के सम्पूर्ण चरित्र का विशद चित्रण किया है।
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