मृत्यु उस सय का नाम है जिससे प्रत्येक व्यक्ति भयभीत होता है ।
मृत्यु हमें आस्तिक बनाती है ।
मृत्यु एक दुर्लभ वस्तु है । मृत्यु में आपको इतिहास-पुरुष बना जाने की कला है ।
मृत्यु अवश्यंभावी है ।
मृत्यु मिलापक होती है ।
मृत्यु को भूलना नहीं चाहिए ।
मृत्यु अभिशाप नहीं, वरदान है ।
मृत्यु का भी उद्देश्य होना चाहिए । जीवन और मृत्यु एक दूसरे के पूरक हैं ।
जीवन-धारा बदलें, मृत्यु हमेशा याद रहेगी ।
मृत्यु पूर्वकालिक घोषणा नहीं करें ।
लेखक कालांतर में माननीय उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रह चुके हैं । संप्रति एक निजी विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत है । आपका जन्म 20 अक्टूबर 1971 को बिहार राज्य के पूर्वी-चंपारण जिले के जलहा नमक गाँव में हुआ था । आपके पिता का नाम स्वर्गीय रामेश्वर प्रसाद सिंह एवं माता का नाम स्वर्गीया ललिता देवी है । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में हीं हुई । आपने उच्च शिक्षा रामदयालु सिंह कौलेज, मुजफ्फरपुर से प्राप्त किया । आपके साहित्यिक गुरु मुंशी प्रेमचंद हैं । आपकी रचनाओं में मौलिकता वर्तमान है । आपने तरह-तरह की रचनाएँ की हैं यथा- कवितायें,लघु-कथाएँ, उपन्यास, शायरी, गीत, नाटक, आदि ।