फिर राघवदास ने घबराए मुद्रा में कहा - ''आ आपलोग बोलते क्यों नहीं ? बोलिए, मुंह खोलिए -- आखिर आपलोग बोल क्यों नहीं रहे ? आपलोग इतने उदास क्यों हैं ?
सहायजी ने मौन तोड़ा -- ''गीता नहीं है ।''
''गीता नहीं है ?''---- क्या मतलब ? यह गीता कौन है ?
थोड़ी देर सोचने के बाद कहा --- ''आ हा हाँ, तो मेरी प्यारी गुड़िया का नाम गीता है ? तो कहाँ है गीता ? लगता है अपने दोस्तों के साथ खेलने गई है --- पर, इसमें चिंता की क्या बात है ? --- आ जाएगी । इसी के लिए चिंतित होने लगे ?---- बड़ी प्यारी एवं दुलारी है न आपलोगों की वह, ---- इसीलिए चिंता लाजिमी है --- अफसोस तो मुझे भी है कि मैं उससे मिल नहीं सका -- पर क्या करूँ ? कोई बात नहीं, मैं फिर आ जाऊँगा ।
सहायजी का मन किया कह दे ---- ''फिर आने की कोई जरूरत नहीं, फिर भी उन्होने कुछ कहा नहीं ।
(इसी उपन्यास से)
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मृग-मरीचिका
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सुधांशु भारद्वाज
लेखक संप्रति एक निजी विद्यालय में कार्यरत है । ये मूल रूप से बिहार राज्य के पूर्वी-चंपारण जिले के जलहा नामक गाँव के वासी हैं । इनकी उच्च शिक्षा बिहार विश्वविद्यालय से सम्पन्न हुई । फिलवक्त इनकी लिखी पुस्तक मृत्यु के करीब एवं कविता-संग्रह मेरी इक्यावन कवितायें प्रकाशित हो चुकी है । इनकी लिखी एक और पुस्तक शहरों का जाल भी पूर्व प्रकाशित है ।