ऐसी कौन सी घड़ी है, जो उसने मुझे संभाला नहीं, वृंदावन दूर हो सकता है, वृंदावन वाला नहीं।।
पाने को ही प्रेम कहे, जग की ये है रीत, प्रेम का सही अर्थ समझायेगी राधा-कृष्णा की प्रीत।
धागो से मोतीयो को तोडा नहीं करते, धर्म से मुँह कभी मोड़ा नहीं करते ,
बहुत कीमती है नाम श्री राधेकृष्ण का , जय श्री राधेकृष्ण बोलना कभी छोड़ा नहीं करते।।
धर्म का प्रवेश पहले काया में फिर वचन में और अन्त में मन में होता है,
जब कि
पाप का प्रवेश प्रथम मन में, फिर वचन में और अन्त में काया में होता है ।
जिसका देह और मन शुद्ध न हो उसका मंदिर में जा कर पूजा करना व्यर्थ है !
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