यह कहानी सामाजिक परिवेश में पनपे उस विक्षिप्त भाव को दर्शाती है जिसमें आज भी लड़के-लड़की में भेद किया जाता है. लड़के-लड़की को आपस में बात करना पाप कहलाता है आज भी लड़कियों को बोझ समझा जाता है समाज में स्त्री को हमेशा से दूसरे दर्जे का समझा गया है ना पीहर उसका होता है ना ही ससुराल वह दोनों जगह ही पराई समझी जाती है अपनेपन को वह पहले भी तरसती रही और आज भी तरस रही है
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