दर्शना पंडित, दर्शना सूरज या लेडी जिब्रान चाहे किसी भी नाम से पुकार लो, जवाब में मिलेगी कुछ शायराना पंक्तियाँ या यूँ कहें कि शब्दों का खिलवाड़।
ये अहमदाबाद में पैदा हुई, बड़ौदा में बचपन बिताया और मुंबई इनकी कर्मभूमि बनी।
वाणिज्य का शिक्षण पाया, व्यापार भी किया परंतु अस्तित्व की खोज इनको ले आई छोटे मासूम बच्चों के बीच, जब से लेकर आज तक ये शिक्षिका की ज़िम्मेदारी निभा रही है। ख़ासकर उन बच्चों को जो सिखने की विकलांगता से पीड़ित हैं।
अपनी निजी संस्था ‘जस्ट फ़न किड्स क्लब’ द्वारा ये बच्चों के सार्वांगिक विकास के लिए समर्पित है।
लिखने की प्रेरणा प्रेमचंद जी की कहानियाँ और गुलज़ार जी की रचनाएँ पढ़ने से एवं अपनी परिस्थितियों को शब्दों में ढालने की आदत से मिली। स्कूल में श्रीमती गॉयल मेम और कॉलेज में श्रीमती अनुराधा मेम की वजह से लेखन में विशेष रुचि उत्पन्न हुई।वैसे बचपन से ही ये किताबों के बीच बड़ी हुई क्योंकि इनके दादाजी श्री सी. एम. पंडित का प्रकाशन कार्यालय था जहां से कई पुस्तकें एवं पत्रिकाएं नियमित प्रकाशित होतीं थी।
इनके लेख, कहानियाँ , कविताएँ अलग अलग मासिक पत्रिका, पुस्तकों तथा अख़बार में प्रसिद्ध होती है।
ये लेखन के अलावा फ़ोटोग्राफ़ी में विशेष रूचि रखती हैं। इन्होंने भारत नाट्यम नृत्य की तालीम ली है।
शब्द इनके लिए साधना है और शब्दों द्वारा ये प्राणी मात्र के काम आना चाहती है।