’शिक्षा और बाज़ार के अपवित्र गठबंधन का उद्घाटन करती बेजोड़ रचना है - अपने पैरों पर!’- अमर उजाला (राष्ट्रीय समाचार पत्र)
शिक्षा और बाज़ार के क्रूर नेक्सस से लड़ते एक मध्यमवर्गीय परिवार की त्रासदीपूर्ण कहानी है - अपने पैरों पर! -Live Vns (लोकप्रिय समाचार पोर्टल)
आसान नहीं है अपने पैरों पर खड़ा होना - इस सार की शानदार प्रस्तुति है, अपने पैरों पर ! - समय पत्रिका (इंटरनेशनल इ-मैगज़ीन)
“शिक्षा का मूल्य अब नैतिकता से नहीं बल्कि बाज़ार द्वारा तय हो रहा है |' इंजिनीयरिंग कर लोगे तो आपकी मार्केट वैल्यू इतनी होगी , एमबीए करोगे तो इतनी और दोनों करोगे तो इतनी !‘इस तरह से एडुकेशन अब कमोडिटी की तरह बेची और ख़रीदी जा रही है | इसी खरीद -फ़रोख्त का शिकार दक्ष (केंद्रीय चरित्र ) पूरे मध्यमवर्ग के प्रतिनिधि के तौर पर एक अंतहीन संघर्ष यात्रा पर है। आंशिक सफलता के बाद मिले हर ठहराव पर एक ही सवाल वहअपने आप से पूछता है कि क्या वह अपने पैरों पर अब तक खड़ा हो पाया है ?“