महाभारत का युद्ध समाप्त हुए कई दशक बीत चुके हैं। अश्वत्थामा श्री कृष्ण द्वारा दिये गए ‘यातना के अमरत्व’ का श्राप वहन करते हुए वन-वन भटक रहा है। ऐसे में उसका आमना-सामना ‘शारन देव’ नाम के एक ग्रामीण से होता है। उन दोनों में प्रश्न उत्तर होते हैं और उस प्रश्नोत्तरी के आधार पर अश्वत्थामा आत्मविश्लेषण करता है। उसकी आँखों में महाभारत का सत्य तांडव कर रहा है। उसे अपने द्वारा की गई गलतियों का पश्च्याताप हो रहा है लेकिन अब समय बीत चुका है। वह श्रापित हो चुका है। अब चाह कर भी कुछ नहीं बदला जा सकता। फिर भी... कुछ ऐसा है जो आने वाले समय के लिए किया जा सकता है। कुछ है जो बदला जा सकता है। ‘कुछ’… जो अश्वत्थामा और शारन देव के वार्तालाप में छुपा है।
...एक सत्य, एक चेतावनी, एक संदेश...