अगस्त 15 बेशक हिंदुस्तान के इतिहास में एक निर्णायक दिन है, लेकिन यह उपन्यास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का आख्यान नहीं, बल्कि स्वतंत्रता-प्राप्ति के पहले के भारत और आधुनिक भारत के राजनीतिक एवं सामाजिक परिदृश्यों के परस्पर विरोधी अंतर को दर्शाने वाला उपन्यास है। इसमें दो कथावचक हैं; एक हैं कल्याणमजी जिनका जन्म 1922 अगस्त 15 को हुआ और जिन्हें महात्मा गाँधी के जीवन के अंतिम पांच वर्षों में उनके अंतरंग सचिव के रूप में कार्य करने का सुयोग मिला। दूसरी कथावचक हैं लेखक नीलकंठन द्वारा सृजित काल्पनिक पात्र सत्या जो नई सह्स्राब्दि 2000 अगस्त 15 के दिन पैदा हुई। भ्रष्टाचार में लिप्त आधुनिक युग के केंद्रीय मंत्री की भानजी होने के नाते वह कुर्सी के लिए हो रही धोखाधड़ी और राजनीतिक उठापटक की चश्मदीद है। नब्बे वर्ष के कल्याणम और तेरह साल की बालिका सत्या अपने-अपने युग के खुद देखे-सुने और अनुभव किये तथ्यों को बारी-बारी से बड़ी साफ़गोई के साथ बयान करते हैं। अलग-अलग परिस्थितियों में एक-दूसरे से अपरिचित इन दोनों पात्रों को ब्लॉग-स्पॉट की युक्ति से लेखक नीलकंठन ने परस्पर संवाद कराया है। सत्या की बयानगी में पात्र और घटनाएँ काल्पनिक हो सकते हैं, किंतु आधुनिक युग में व्यापक रूप से चल रही भ्रष्ट राजनीति, परस्पर अविश्वास और अमानवीय क्रूरताओं को प्रतिफलित करने के कारण सत्या की बयानगी भी कल्याणम के संवादों की भांति ऐतिहासिक यथार्थ ही है। लेखक ने एक के बाद एक खुलने वाले दोनों ब्लॉग-संवादों को आपस में गूँथ दिया है कि उपन्यास का वाचन करने वाले पाठक को त्वरित आवृति में घूमने वाला कोई श्वेत-श्याम चलचित्र देखने की अनुभूति मिलती है।
कुमरी एस. नीलकंठन (1964) का जन्म भारत के दक्षिणी छोर कन्याकुमारी के समीप नागरकोविल में हुआ| इधर तीन सागर की संगम-स्थली और उधर सह्याद्रि की सुरम्य शैलमालाएं दोनों के मध्य सरसब्ज़ वनस्पतियों और पशु-पक्षियों से भरपूर उस आँचल ने नीलकंठन को प्रकृति प्रेमी और कवि-ह्रदय बनाया तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं| कला और संस्कृति के प्रति आसक्ति नीलकंठन को अपने माता-पिता से मिली | फलत: छात्र-जीवन में ही शिक्षा’ पर पहली कविता लिखी गई| भाषाओं के प्रति प्रेम के कारण आपने तमिल के अतिरिक्त मलयालम और हिन्दी का अध्ययन किया और हिन्दी में विशारद उपाधि प्राप्त की| साहित्य के प्रति अभिरुचि के चलते कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध की पुस्तकों का वाचन करते रहे और फिर स्वयं लिखने लगे| तमिल की अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कृतियाँ निरंतर छपती हैं| साहित्य के क्षेत्र में नीलकंठन विख्यात लेखक सुन्दर रामस्वामी और तमिल विश्वविद्यालय के कुलपति वी. अय. सुब्रह्मण्यम से प्रभावित हुए| भौतिकी में एमएस. सी. उपाधि प्राप्त करने के बावजूद कला और संस्कृति के प्रति अभिरुचि के चलते सूचना प्रौद्योगिकी और पत्रकारिता में प्रशिक्षित होकर व्यापक जन-सेवा के लक्ष्य से आकाशवाणी की सेवा स्वीकार की| विगत तीस वार्षों में आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों में कार्य करते हुए अपनी वाणी, लेखनी और कर्म से लक्ष-लक्ष श्रोताओं और पठकों का मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धन किया| ‘युवा भारत’ कार्यक्रम के अंतर्गत आपने नई पीढी को प्रेरणा प्रदान की| सैकड़ों वृत्त चित्रों के लिए पटकथा और संवादों की रचना की| ‘मेरे प्रिय पिताजी के नाम’ कहानी संग्रह केरल विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में स्वीकृत हुआ| इस कहानी में इतना दम रहा कि उसे पढ़कर वास्तविक जीवन में तमिलनाडु की एक महिला ने आत्महत्या का अपना विचार ताज दिया था| | ‘ एक सूर्य और इक्यावन चन्द्रमा’ नामक कविता संग्रह की सभी कवितायेँ चंद और चांदनी पर केन्द्रित हैं| इस संग्रह की अनेक कवितायेँ बंगलुरु साहित्योत्सव में कन्नड़ और अंग्रेज़ी में अनूदित होकर साहित्य अकादेमी के वर्त्तमान अध्यक्ष चंद्रशेखर कम्बार द्वारा प्रशंसित हुईं | स्वतंत्र भारतके प्रथम सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल साम मनेकशाह पर इनकी जीवनी बहुचर्चित है| तमिल के गौरव-ग्रंथ तिरुक्कुरल की सरल गद्यपद्यात्मक व्याख्या पठनीय है|
‘ये नीम कडवी नहीं है’ शीर्षक नाटक पर तमिलनाडु सरकार का स्वर्ण-पदक मिला| मनोंनमणियं सुन्दरानार विश्वविद्यालय की शोध-पत्रिका में मनोविज्ञान विषय पर प्रकाशित इनका शोध-लेख काफी सराहा गया|