अपनी बात
अभ्यास भी गुरु है। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीखा जा सकता। संगीत के साथ रियाज जुड़ा है तो लेखन के साथ अभ्यास ।
अभ्यास के साथसाथ यदि किसी से मार्गदर्शन मिलता रहे तो लक्ष्य जल्दी प्राप्त हो जाता है। गुरु का मार्गदर्शन दीपक की लौ की तरह होता है जो अंधेरे में राह बताता है।
लेखन के लिए ये तीन बातें जरुरी है। एक, अभ्यास खूब किया जाए। दो, अपने ज्ञान का प्रयोग करना सीखा जाए । तीन, सही मार्गदर्शन प्राप्त किया जाए। इसी तीसरे लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह पुस्तक प्रस्तुत की जा रही है, जिस का सारा श्रेय कहानी लेखन महाविद्यालय के सूत्रधार डॉ. महाराज कृष्ण जैन को जाता है। इसकी उपयोगिता तो प्रबुद्ध पाठक ही बता सकते हैं। इस लिए आप की आलोचना, प्रतिक्रिया और सुझाव का स्वागत किया जाएगा। अंत में, उन सभी का आभार, जिन्होंने इस पुस्तक की तैयारी में अपना अमूल्य सहयोग किया है।
दिनांक 05-07-95
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
नदी दरवाज़ा, रतनगढ़-458226 (मप्र)