 
                        
                        हमारी जिंदगी में ऐसे अनेक लम्हें हैं जिन्हें हम महसूस तो करते हैं पर किसी के सामने रख नहीं पाते हैं। कहीं हमारे अतीत की कुछ धुंधली यादें जो हमें आगे बढ़ने से रोकती और अपनी ओर खींचती रहती हैं, तो कहीं अधूरे वादों का मजमुआ जो हालातों और मजबूरियों के नज़र हो गया। आंखों में मोतियों से भरे कुछ ख़्वाब जो बिखर कर रह गए, कहीं एक एहसास जिसे अल्फाज़ की शक्ल न मिल सकी, कुछ अनकही बातें जो हमारे अंदर ही दफ़्न रह गई। ज़िंदगी की कश्मकश में कहीं अपनों को खोते हम तो कहीं हमारे अपने जो हमें खो रहे। कभी लाहसिल के पीछे भागते हुए ज़िंदगी गुज़र गई, तो कहीं हासिल पर सब्र कर के जिंदगी गुज़ार दी गई। ऐसे अनेक अहससत और अनगिनत लम्हों को कविताओं की पंक्तियों में पिरो कर मैं अपनी चौथी लघु काव्य पुस्तिका "बेरुखी" को आप सबके बीच रख रही हूं। मैंने अपनी कविताओं को समाज के आईने के रूप में रखने की कोशिश की है। मुझे उम्मीद है आप इससे कहीं न कहीं ज़रूर जुड़ेंगे और मेरी कविताएं आपके हृदय तक ज़रूर पहुंचेगी।