मानव का सच्चा साथी वह स्वयं खुद ही होता है। लेकिन अहंकार भाव के वशीभूत होकर वह स्वयं से ही रूबरू नहीं हो पाता। अहंकार भाव से मुक्त होकर जब कभी भी मानव मुक्त हृदय हो एकाग्रचित्त होता है तो उसका स्वयं का मन, चित्त, हृदय ही उसका 'आईना' बन जाता है। यह वह क्षण होता है जब उसको सही और गलत का एहसास होता है। अहंकार भाव से मुक्त हृदय की अवस्था मानव को स्वार्थ सम्बन्धों के संकीर्ण दायरों से बाहर निकलकर शेष सृष्टि के बारे में सोचने, विचारने व सम्बन्ध स्थापित करने को उद्दत करती है। अच्छे विचारों के समावेश से न केवल व्यक्तित्व निखरता है बल्कि समाज को भी नई दिशा मिलती है। प्रदीप 'पांथ' द्वारा प्रस्तुत काव्य संग्रह 'आईना' विभिन्न विषयों पर लिखी गयी कविताओं का एक ऐसा संग्रह है जो पाठकों को समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए चिंतन को प्रेरित करेगा।
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