साक्षी, एक संवेदनशील लेखिका, प्रेरणा की खोज में एक पुरानी हवेली में आती है —
जहाँ सन्नाटा भी शब्द रखता है, और दीवारें यादें सुनाती हैं।
धीरे-धीरे उसे महसूस होता है कि वह अकेली नहीं है;
कोई उसकी कहानियों में साँस ले रहा है —
कोई जो मर चुका है, पर अब भी लिख रहा है।
जैसे-जैसे साक्षी सच्चाई के करीब पहुँचती है,
वो खुद कहानी का हिस्सा बन जाती है —
कबीर की आत्मा उसके भीतर बसती है,
राजवीर का अपराध उसे घेरे रहता है,
और हवेली खुद एक जीवित चरित्र बन जाती है।
“खामोशी की ज़रूरत” भय और साहित्य का संगम है —
एक ऐसी कथा जो शब्दों से नहीं,
बल्कि मौन से लिखी गई है।
यह पुस्तक उन लोगों के लिए है
जो जानते हैं कि हर कहानी का एक छिपा हुआ लेखक होता है —
और कभी-कभी वो आप खुद होते हैं।
“हर लेखक किसी आत्मा का माध्यम होता है —
फर्क बस इतना है कि कोई उसे पहचान लेता है, कोई नहीं।”
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