दिल्ली महानगर में रहने वाले एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का विलोक एक गैर सरकारी संस्था में प्लेसमेंट होने के बाद उसे ज्वाइन कर लेता है। हमेशा मुश्किल चुनौतियों से दूर भागते हुए आसान रास्ता चुनते आये विलोक को पता चलता है की जिस रास्ते को वो आसान समझता था वो उसकी कल्पना से कहीं ज़्यादा मुश्किल है। एक शहर में रहने वाले आराम पसंद और सुविधा भोगी विलोक को नक्सली प्रभावित क्षेत्र में रह कर ग्रामीण विकास के लिए काम करने की चुनौती मिलती है। इसी रास्ते पर चलते-चलते कब वो उसकी ज़िन्दगी की राह बन जाएगी उसे पता ही नहीं चल पाता। बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पीछे भागने वाले युवाओं के बीच एक दिशाहीन नौजवान की कहानी जो एक गैर सरकारी संस्था में काम करते हुए सभी चुनौतियों का सामना करता है और बनाता है अपनी एक लीग से हट कर काम करने वाले की पहचान। कैसे बनता है विलोक एक “डेवलपमेंटवाला”।