अरविंद ने जिस दिन से पत्रकार की कलम पकड़ी है, तब से मैं उनकी हर कामयाबी का साक्षी रहा हूँ। जब वे ‘हिंदी मिलाप’ से जुड़े, मैं वहाँ संपादक था। हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ की वजह से अरविंद के सामने कभी कोई दिक़्क़त नहीं आयी। अरविंद तरक़्क़ी करते ही गये। अरविंद की कई ख़ूबियाँ हैं। वे अध्ययनशील हैं। उनका मन जिज्ञासु है। एक अच्छे शोधार्थी के सारे गुण उनमें मौजूद हैं। वे प्रयोगधर्मी हैं और नित-नये प्रयोग करने से डरते नहीं हैं। छोटी-उम्र में ही अरविंद ने दक्षिण-भारत के सभी राज्यों की कला-संस्कृति, इतिहास, राजनीति आदि के बारे में जानकारियाँ जुटा लीं। यही जानकारियाँ उनके लिए एक पत्रकार के रूप में काफ़ी लाभप्रद साबित हुईं।
‘दो स्तंभ’ नाम से यह जो पुस्तक प्रकाशित हो रही है, इसमें अरविंद के लिखे कुछ लेख हैं। दो अलग-अलग स्तंभों में प्रकाशित ये लेख अरविंद ने उस समय लिखे थे, जब वे संपादन-कला सीख रहे थे। अरविंद हमेशा पत्रकारिता में अपने काम को उन्नति की ओर ले गये हैं। इन लेखों के ज़रिये सार्थक प्रयोग अरविंद ने किये हैं। अरविंद का हर काम लोक-कल्याण के लिए ही रहा है। पत्रकारिता के सिद्धांतों से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। सत्य को ही हमेशा अपने काम का आधार बनाया और इसी वजह से उन्हें हमेशा सफलता मिली।
सदाशिव शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार, संपादक
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