नाम:डॉ. हरेराम सिंह, ख्यातिप्राप्त कवि व आलोचक.
जन्म : 30जनवरी 1988 ई.को, बिहार के रोहतास जिला अन्तर्गत काराकाट प्रखंड के करुप ईंगलिश गाँव में।
शिक्षा :एम.ए.(हिंदी),यू.जी.सी-नेट,पीएच.डी.
प्रकाशित पुस्तकें : हाशिए का चाँद ’(2017),‘ रात गहरा गई है !’(2019)‘ पहाडों के बीच से ’(2019), ‘ मैं रक्तबीज हूँ !’(2019), ‘ चाँद के पार आदमी ’(2019), ‘रोहतासगढ़ के पहाड़ी बच्चे’(2019), ‘ रात के आखिरी पहर तक ’(2020) ‘ नीम की पत्तियों से उतरती चाँदनी ’(2020), ‘ मुक्ति के गीत ’,(2020)'बुद्ध तड़पे थे यशोधरा के लिए!'(2021),'मेरे गीत याद आयेंगे'(2021)(कविता संग्रह); ‘ओबीसी साहित्य का दार्शनिक आधार ’(2015),'डॉ.ललन प्रसाद सिंह:जीवन और साहित्य'(2016),'हिंदी आलोचना का बहुजन दृष्टिकोण'(2016),' हिंदी आलोचना का प्रगतिशील पक्ष ’(2017)‘ हिंदी आलोचना का जनपक्ष ’(2019),' डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह की वैचारिकी, संस्मरण एवं साक्षात्कार ’(2019), ‘ आधुनिक हिंदी साहित्य और जन संवेदनाएँ ’(2021),‘ किसान जीवन की महागाथा : गोदान और छमाण आठगुंठ ’(2021),'समकालीन सच:संदर्भ साहित्य और समाज'(2021)(आलोचना-ग्रंथ), ‘ टुकड़ों में मेरी जिंदगी ’ (2018), ‘अनजान नदी (2019)!’(उपन्यास), ‘अधूरी कहानियाँ ’(2018) ‘ कनेर के फूल '(2019),’कहानी-संग्रह) ‘ लोकतंत्र में हाशिए के लोग ’ (2019),'डायरी के अंतिम पन्ने'(2021) और 'कुशवाहा-वंश का इतिहास '(2021)।
संप्रति:स्वतंत्र लेखन