जगद्गुरु शंकराचार्य पर सृजित उपन्यासों की श्रृंखला में ‘द्वारका मठ’ जनार्दनराय नागर द्वारा सृजित अत्यधिक चर्चित उपन्यास है।
इस उपन्यास में रामेश्वर की ओर प्रयाण करते समय महाबलेश्वर में जगद्गुरु शंकर को विभिन्न सम्प्रदायों के अधिकृत विद्वानों से शास्त्रार्थ करना पड़ा। शास्त्रार्थ के समय भरी सभा में एक स्त्री द्वारा बालक के शव को जीवित करने की प्रार्थना की गई। इस पर पण्डितों ने यह संकल्प व्यक्त किया कि शंकराचार्य को ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’ की स्वयं की घोषणा को सार्थक सिद्ध करना चाहिए। नीलकण्ठ के साथ हुए शास्त्रार्थ में शंकराचार्य का उद्घोष था ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’ और नीलकण्ठ की घोषणा थी ‘जीव सत्यं ब्रह्म मिथ्या’। शास्त्रार्थ में जगद्गुरु के सच्चिदानन्द ब्रह्म और शिवोऽहम के मन्त्र की विजय हुई। द्वारका पहुंच कर उन्होंने गुर्जरेश्वर की साक्षी में ‘द्वारका मठ’ की स्थापना की।