एहसास से बढ़कर और कुछ नहीं। महसूस तो सभी करते हैं लेकिन उन्हें बयाँ करने का सबका अपना तरीक़ा है, सबकी अपनी ज़बाँ है। 'एहसास की ज़बाँ' नज़्में, शाइरी और ख़याल का किताबी-संदूक़ है, जिसमें से औरत के कई एहसास खुलकर सामने आते हैं - उसका ग़ुस्सा, नाराज़गी, इंसानियत, मोहब्बत, नफ़रत, ख़ुदग़र्ज़ी, ईश्वर-ख़ुदा की जुस्तजू, चाँद-सूरज के ख़्वाब और पुरुष-प्रधान समाज के ख़िलाफ़ लड़ाई! अपने संदूक़ से निकाले हुए ये एहसास औरत ने लिबास की तरह पहने हैं और उनमें से कई अपने जिस्म और ज़ेहन से उतार भी फेंकें हैं।
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