प्रस्तुत बाल उपन्यास ‘घर का चिराग’ बच्चाचोरी को लेकर लिखा गया है। इसमें दो अभागे
बालकों की कथा है, जिनका बचपन गरीबी ने छिन लिया है। वे बालीउम्र में ही घर का जिम्मा
उठाने के लिए बड़ों की बेरहम दुनिया में निकल पड़े ह ैं।
तभी उनका अपहरण हो जाता है। वे हिम्मत नहीं हारते। दिमाग का इस्तेमाल करते हैं।
धीरज रखते हैं। समझ से काम लेकर अपने-आप को चोरों से छुड़ाने में सफल हो जाते हैं।
उपन्यास गरीब बच्चों के बचपन से आगे निकलने की भी गाथा है, जो बचपन से ही घर
का बोझ उठाने में जुटे रहते हैं।
लेखक, वीरेंद्र कुमार देवांगन, मध्यप्रदेष राज्य से पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में पहले सहायक विकास विस्तार अधिकारी, फिर मुख्य कार्यपालन अधिकारी-जनपद पंचायत रहते हुए उपायुक्त-विकास के पद से सेवानिवृत्त हैं। बेरोजगारी के दिनों से लिखने के शौक ने उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद भी लेखन-कार्य में संलग्न कर रखा हैं। शासकीय सेवा में व्यस्तता के बाद भी उनके लेख, कहानी, लघुकथा आदि छपते रहे हैं। वर्तमान में उनकी विविध रचनाएॅं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में निरंतर प्रकाषित हो रही हैं, जिनमें प्रतियोगिता पत्रिका भी शामिल है।