इस पुस्तक को लिखने का उदेश्य अन्तरिक्ष के गर्भ में छिपी हुई भारत की बीस हजार वर्ष की गौरवशाली विरासत को भारत वासियों और विश्व के लोगों से अवगत कराना है । वैज्ञानिकों और ऋषियों मे इस बात पर सहमति है कि पृथ्वी निर्माण के उपरान्त इस धरा पर अब तक सूर्यमण्डल का आकाश गंगा की गति की स्थिति के कारण पांच हिम युग (आइस एज) बीत चुके है। पांचवा और अन्तिम हिमकाल जिसका अन्त 17000 बीसी में हुआ तब से लेकर वर्तमान भारतीय संस्कृति के इतिहास मे हमारे ऋषियों ने अपनी सोच और मुक्त चिंतन द्वारा हिंदू धर्म के इतिहास मे बहुतेरे नग जोड़े हैं।
हमारे ऋषियों ने दसावतार पुराणों द्वारा डार्विन विकासवाद के हजारों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीव उत्पत्ति जैसे गंभीर प्रश्न का समाधान प्रकट किया। वर्तमान ऋषियों में विशेषकर महर्षि अरविन्द ने अपने अतिमानस वाद का सिद्धान्त उपस्थित कर इस सोच को और आगे बढाया।
हिमकाल के अन्त के साथ ही 17000 बीसी वर्ष पूर्व हमारे महर्षि अन्गिरस आदि मानव मनु, भृगु, भारद्वाज ने सृष्टि और भारतीय संस्कृति की खोज प्रारम्भ कर दी थी। भृगु ऋषि विश्व में पहले महर्षि थे जिन्होंने पृथ्वी के जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव कों सूर्य मण्डल और नक्षत्रों के प्रभाव से जोडा और ज्योतिष तथा खगोल शास्त्र जैसे ग़ूढ विषय की नीवं डाली ।
हमारी सांस्कृतिक इतिहास की गंगा का अविरल प्रवाह सृष्टि के प्रारम्भ से बहता रहा है। बाहर से आये मध्य एशिया विशेषकर कुषाण सम्राट कनिष्क ने भारतीय ऋषियों की सोच को बढावा दिया और पहली सदी में कुषाण सम्राट कनिष्क ने आश्वघोष नागार्जुन, चरक जैसे विद्वानों को आगे बढाया जिनका नाम इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों मे लिखा गया है।
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