एक अदद इस्पात उद्योग के लिए तरस रहा था। बेरोजगारी चरम पर थी। हालांकि सरकार ने मावलीभाटा, लोहंडीगुड़ा और रायकोट में इस्पात उद्योग लगाने का प्रयास किया, मगर वह इन जगहों में विध्नबाधाओं के कारण सफल न होकर ‘नगरनार’ में सफल हुआ। अंधविष्वास और गरीबी पहले भी थी और आज भी है। उग्रवाद पैर पसार रहा था।
इन्हीं सब भूली-बिसरी यादों, घटनाओं, आपबीतियों और भोगे यथार्थ में नाम, पता और स्थान बदलकर ‘जैसे को तैसा’ उपन्यास का तानाबाना बुना गया है। उम्मीद है पाठकों को पसंद आएगा।
लेखक, वीरेंद्र कुमार देवांगन, मध्यप्रदेष राज्य से पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में पहले सहायक विकास विस्तार अधिकारी, फिर मुख्य कार्यपालन अधिकारी-जनपद पंचायत रहते हुए उपायुक्त-विकास के पद से सेवानिवृत्त हैं। बेरोजगारी के दिनों से लिखने के शौक ने उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद भी लेखन-कार्य में संलग्न कर रखा हैं। शासकीय सेवा में व्यस्तता के बाद भी उनके लेख, कहानी, लघुकथा आदि छपते रहे हैं। वर्तमान में उनकी विविध रचनाएॅं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में निरंतर प्रकाषित हो रही हैं, जिनमें प्रतियोगिता पत्रिका भी शामिल है।
प्रकाषक