Share this book with your friends

Kab Hogi Bhet / कब होगी भेंट

Author Name: Mathura Kalauny | Format: Paperback | Genre : Music & Entertainment | Other Details

सींग कटा कर नाटक मंडली के बछड़ों में शामिल हुए थे परमानंद काका, पर ऐन मौके पर बीमार पड़ गये और आवाज तक बैठ गयी। ऐसे में रुकुमा का प्रवेश होता है। रुकुमा का कहॉं तो एकदम व्‍यवस्थित धरेलू जीवन था। शादी पहले से ही तय थी। और यहाँ नाटक मंडली में स्‍टेज में लड़की का भेष धारे गजेन्‍द्र से टकराती है। प्‍यार में ऐसे डूबती है कि सब संयम दरकिनार हो जाते हैं। 

धनसिंह को लगता था कि गजेन्द्र और रुकुमा का प्यार कुमाऊँ की प्रेमकथा का एकदम आधुनिक और आकर्षक संस्करण है। कैसा था उनका प्रेम? नायक अपनी नायिका से प्रथम मिलन में एक लोकगीत के सहारे पूछता है कि हे प्रेयसी, जाई और चंपा के फूल खिले हैं। खेत में सरसों फूली है। आज के दिन इस महीने हम मिले हैं, अब फिर कब होगी भेंट? जब भेंट हुई तो सिर में डंडे खाये, पहाड़ की चोटी से धकेला गया। याददास्‍त तक चली गयी। वह तो भला हो चिंतामणि वैद्य और उसकी नातिनी का कि समय लगा पर याददास्त लौट आयी। इस बीच रुकुमा पर क्या बीती? हास्य रस से भरपूर, उत्‍तराखण्‍ड में रची-बसी एक बेहद दिलचस्प प्रेम कहानी।

Read More...

Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners

Ratings & Reviews

0 out of 5 ( ratings) | Write a review
Write your review for this book

Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners

Also Available On

मथुरा कलौनी

मथुरा कलौनी की पहाड़ में बीते बचपन की स्मृतियाँ इतनी बलवती हैं कि वहाँ की अनुभूतियाँ यदा-कदा उनकी रचनाओं में झाँकने लगती हैं। गंभीर से गंभीर विषय को हास्य-व्यंग्य का पुट देकर चुलबुले अंदाज में प्रस्तुत करने में वे सिद्धहस्त हैं। प्रेम, शृंगार, हास्य, व्यंग्य आदि सभी रसों के इंद्रधनुषी रंग उनकी अद्भुत वर्णनात्मक शैली में मुक्त तैरते रहते हैं। उनकी रचनाएँ बहुत पठनीय होती हैं। आभास ही नहीं होता कि भावनात्मक अनुभूतियों के आवेगों से गुजरते हुए कब कथानक के शीर्ष पर पहुँच गये। 

आपने चार दशक पहले साहित्यिक यात्रा आरंभ की थी। 1988 में बेंगलूरु में कलायन नाट्य संस्‍था की संस्थापना की। इन्‍टरनेट में कलायन पत्रिका (www.kalayan.org) का प्रकाशन 1999 में आरंभ किया। आपकी लगभग डेढ़ सौ कहानियाँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। पिछले 33 सालों में आप इक्कीस नाटक और दर्जन से अधिक लघुनाटकों का लेखन और मंचन कर चुके हैं। दस बड़े नाटक और चार लघु-उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। दुबई में दो हिन्‍दी नाटकों के मंचन के साथ  कंबोडिया, बीजिंग, असम-मेघालय, राजस्थान और बाली में अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलनों में नाट्यपाठ की प्रस्तुतियाँ खासी चर्चित रहीं।

संप्रति आइटीसी लिमिटेड में रिसर्च मैनेजर के पद से सेवानिवृति के उपरांत  बेंगलूरु में नाटकों के लेखन और निर्देशन में सन्नद्ध हैं तथा कलायन नाट्य संस्था के संचालन व कलायन पत्रिका के संपादन और संचालन को समर्पित हैं।

Read More...

Achievements

+6 more
View All