डॉ. आरती ‘लोकेश’ का सन 2015 में प्रकाशित पहले उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’ के लंबे अंतराल बाद प्रकृत उपन्यास रचना है। उपन्यास में स्त्री केंद्रित विभिन्न विषयों के सूक्ष्म चित्रण के साथ-साथ सामाजिक जटिलताएँ, शिक्षा, वर्चस्व, व्यवस्था, अहंवादिता, टूटते संबंध आदि अनेक समस्याएँ उपस्थित हुई हैं। स्त्री के सैद्धांतिक आग्रहों से दूर स्त्री जगत के अनेक व्यावहारिक पक्षों को रेखांकित करती उपन्यास की नायिका चारु के अतिरिक्त विपुल, शुभदा, प्रमोद, चाची सुशीला, मंजु, दादी, गोविंद, अरविंद तथा मौली आदि अन्य पात्र कथा को गति प्रदान करते हुए प्रकट होते हैं। कथा के प्रवाह, घटनाओं की संयोजकता तथा पठन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए लेखिका ने उपन्यास को 9 उपशीर्षकों में विभक्त किया है- जो इसकी प्रभावोत्पादकता को बढ़ाते हैं।
उपन्यास का केंद्रीय चरित्र चारु है, पूरी कथा उसके आसपास, उक्त अलग-अलग खंडों में घटित होते हुए आगे बढ़ती है जोकि अलग-अलग होते हुए भी सगुम्फित है। चारु के संदर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि जब दर्द और ग्लानि हद से बढ़ जाता है तो वही दवा बन जाता है। प्रसंगानुरूप भाषिक प्रयोग और संवादों की रचना में डॉ ‘लोकेश’ वर्तमान रचनाकारों की अग्र पंक्ति में खड़ी दिखाई देती हैं। नए-नए शब्दों का घड़ना, चयन करना और परिवेश तथा पात्रों के अनुकूल भाषा का प्रयोग उपन्यास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण है जो पाठक जिज्ञासा और पठनीयता को बढ़ाता है। वस्तुतः उपन्यास की रचना में भाषा रूपी औजारों का अकूत भंडार देखने को मिलता है, जो कला- सौष्ठव का मजबूत पक्ष है| प्रकृत उपन्यास एक ऐसी युवा स्त्री की गाथा है जिसके साथ कई परिचितों के साथ न चल पाने की त्रासदी जुड़ी हुई है, जो साथ लगातार रहते हुए अकेलापन महसूस करती है।