युद्ध समाप्ति के बाद जब रथ छोड़कर उतरने की बात आई तो देवकी नंदन ने अपने मित्र अर्जुन को पहले रथ से उतार जाने के लिए कहा और उसके बाद वो जैसे ही रथ से उतरे उसके बाद पूरा रथ जलकर भाष्म हो गया | अर्जुन रुद्र तेज का प्रकोप देखते ही रह गये | इतना ही नहीं कर्ण के अमोघ वा ण से भी अर्जुन के रथ को श्री हनुमान जी ने बचाया था | अमोघ वा ण से अर्जुन के रथ को बचाने के निमित्त से उन्होंने रथ को लेकर पाताल में जाना मुनासिब समझा और अमोघ वा ण गुजर जाने के बाद फिर धरातल पर आ गये | पूरे युद्ध भूमि में हर पल हर क्षण श्री हनुमान जी अर्जुन के दंभ को प्रशमित करते रहे और उनके हुनर के साथ साथ मनोदशा को भी संतुलित रखा |
अगर चर्चा हुए भी होंगे तो उसमें मदभागवत गीता के आस पास ही सभी विषयों का घूमना एक स्वाभाविक घटना ही मान लेना होगा | हमें समय के साथ साथ बदलते परिप्रेक्ष्य में अपने शास्त्रीय संवाद में भी मौजूदा परिस्थिति में सन्दर्भीत होने वेल तत्व को भी समाविष्ट करना होगा | कथा गीता इसी क्रम में किया जाने वाला एक सफल प्रयास है ऐसा हम मान सकते हैं |