आजकल, प्रश्न यह भी पूछा जा रहा है कि, आखिर क्यों कवि सम्मेलनों का स्तर पहले जैसा नहीं रहा? कुछ हद तक यह बात सही भी है कि स्तर पहले जैसा नहीं रहा। इसके कई कारण हैं। आजकल कवि सम्मेलनों में चुटकुले ज्यादा सुने-सुनाये जा रहे हैं। पर कवि करे भी तो क्या करे? साहित्यिक रचनाएँ कोई सुनना नहीं चाहता। अच्छी रचनाएँ मंच पर पिट जाती हैं। मजबूर होकर कवि को श्रोताओं की पसंद को ध्यान में रखकर, बिना मन के फूहड़ रचनाएँ सुनानी पड़ती हैं। दोष श्रोताओं का भी है।
काव्यकला, साहित्य, हास्य का पतन हो गया।
चुटकुलों का अब मंचों पर चलन हो गया।।
अरविंद यादव अपने कलमकार होने का धर्म बखूबी निभा रहे हैं। वे उम्दा और उच्च कोटि के पत्रकार हैं। कई दिग्गजों कवियों की विधाओं तथा उनके विचारों से पाठकों को परिचित कराने का उनका प्रयास सराहनीय है। उनके इस कार्य के लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई तथा भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।
जीवन में सुख-दुख का अनुपात नहीं होता,
मृत्यु पर्यंत कोई आजाद नहीं होता।
तर्कों से तुम चाहो दिखला दो विद्वत्ता,
भावों का शब्दों में अनुवाद नहीं होता।।
नरेंद्रराय
सुप्रसिद्ध कवि, लेखक, चित्रकार व शिक्षक
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners