कुहासे के तुहिन कथा संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ संकलित हैं। कथाकारा स्वयं उच्च शिक्षित एवं मध्यवर्गीय समाज से सम्बंधित हैं इसलिए उन्हें भारतीय संस्कृति सहित विदेशी सभ्याचार, विशेषकर अरब संस्कृति का सूक्ष्म व विस्तृत ज्ञान है। इस कथा संग्रह में बलात्कार उत्पीड़न, बचपन के प्रतिकार, संथारा परंपरा, नारी ममत्व की पराकाष्ठा, महिला सशक्तिकरण, कोरोना काल की भयावह परिस्थितियों तथा आत्मीय संबंधों की तिड़कन, लेखक-संपादक संबंध, वृद्धों का तिरस्कृत जीवन एवं खुद्दारी की भावना, बड़े होने के नाते उत्तरदायित्व एवं बलिदान की भावना, भारतीय संस्कृति की पहचान, पत्थरों से जुड़ी मानवीय संवेदनाएं, प्रवास अनुभवों आदि को आधार बनाकर इन कथाओं का ताना-बाना बुना है। कथाकार डॉ. आरती लोकेश की इन विषयों पर गहरी पकड़ है। वह सूक्ष्म भावनाओं तथा पल प्रतिपल करवट बदलते अहसासों, अर्जित ज्ञान व अनुभवों को सलीके से संजोने में सिद्धहस्त हैं। निस्संदेह ये कहानियाँ अधिकतर उच्च शिक्षित एम मध्यवर्गीय संस्कृति में पले बढ़े परिवारों के पात्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं लेकिन इन पात्रों की मानसिकता पूर्णतया भारतीय संस्कृति में रची बसी है। अपनी और पराई धरती पर भी वह अपनी मूल संस्कृति से कटते नहीं, जड़ों से टूटते दिखाई नहीं देते। वे विदेश की धरती पर भी ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ की छवि स्थापित करने से गुरेज नहीं करते। साथ ही साथ कथाकारा भारतीय समाज में गहरे तक प्रवेश कर चुकी बलात्कार व आडंबर जैसी बुराइयों एवम् कुरीतियों पर भी शाब्दिक प्रहार तथा जिम्मेदार लोगों पर तीक्ष्ण कटाक्ष करने से नहीं चूकतीं।