लघुकथा का इतिहास बहुत पुराना है। इसके आधुनिक स्वरूप की नींव सन 1970 के आरंभिक वर्षों में रखी गई थी। उस दशक में अनेक लघुकथाकारों के विद्वानों साथियों ने इसे अपनी अथक मेहनत, प्रयोग और रचना धर्मिता से सजाया-संवारा और वर्तमान स्वरूप में लाने का प्रयास किया।
आरंभिक समय में इसे लघु कथा, छोटी कहानी, मिनी कथा व्यंग्य कथा आदि अनेक नामों से सुशोभित किया गया। वर्तमान समय में लघुकथा अपने स्वतंत्र अस्तित्व में मुखर होकर स्थापित हो चुकी है। यह अपनी मारक क्षमता के कारण आधुनिक समय की सबसे प्रिय विधा बन गई है।
सूचना क्रांति और दौड़ती-भागती जिंदगी में लोगों के पास समय की कमी हो गई हैं। नहीं चाह कर भी वे अपना समय सोशल मीडिया पर बिताने को मजबूर हैं। इस कारण से उन के जीवन में समयाभाव बना हुआ है। वे सामाजिक रुप से एकांकी होते जा रहे हैं। इस वजह से सामाजिकता का अभाव, प्रेम, प्यार, मनुहार, आपसी सहयोग, परस्पर मेल-मिलाव का अभाव होता जा रहा है।