मैं शायरों के लिए मिर्ज़ा ग़ालिब बना,
पाठकों के लिए लेखक।
जिसे हसना था, मैं ने जोकर बन हसाया।
जिसे कुछ सुनना था, गीतकार बन सुनाया।
कुछ को जानवर पसंद थे, तो मैं उनके लिए
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर भी बना।
तो कुछ को कंप्यूटरों से प्यार था,
तो लो मैं टेक्नोलॉजी का जीनियस भी बन गया।
पर अंत में उन्हें मैं खुश न कर पाया।
मैं उनकी उम्मीदों पर खरा न उतर पाया
क्योंकि उन्हें बुरे लोग पसंद आते हैं
और मैं वही नही बन सका।
- प्रवीन गुप्ता
ऑर्फियम इंडिया (Orpheum India) के संस्थापक, प्रवीन गुप्ता का लेखक बनना कोई इत्तेफ़ाक नही बल्कि साजिश थी ताकि वह इस दुनिया को बेनकाब कर सकें और लोगों को सच्चाई से वाकिफ कराएं। उनके लेखन चुनने की वजह नाही इश्क है, ना ही धोखा और नाही चाहत। उन्होंने तब तब लिखा है जब जब वह उदास और अकेले हुए हैं। और आजकल तो वह सिर्फ लिख ही रहे हैं। मैं और मेरा अकेलापन बस उसी सफर का एक दास्तां हैं। आशा है की आप प्रवीन के शायरियो और गजलों से जुड़ेंगे।