‘मानवता जी उठे’ मात्र एक काव्य-संग्रह नहीं, अपितु करुणा, सत्य और प्रेम की उन अनन्त ज्योतियों का अनुगान है, जिनसे मानवता की नूतन चेतना संजीवित होती है। कवि का मन यहाँ एक प्रवहमान गंगा-तरंग है जिसमें कभी विरह की वेदना, तो कभी ममता की मधुर लहर, तो कभी करुणा की करुण पुकार निनादित होती है। गीत, कविता, दोहा, सवैया, मुक्तक, हर छन्द, हर शिल्प, कवि के भाव का साकार रूप बनकर उपस्थित है। इस संकलन में भाषा या अलंकार साधन मात्र हैं; मूल स्वर तो हृदय की संवेदना है, जो पाठक के अंतर्मन को स्पन्दित कर मानवता की ज्योति जगाती है।