यह कहानी सामाजिक बहुरूपदर्शक के चश्मे से स्त्री और नारीत्व के इर्द-गिर्द घूमती है।
इस कहानी का सार सोचे-समझे जोखिमों के साथ नवीन उपायों के माध्यम से नारीत्व की
जटिलता और पेचीदगियों पर विजय पाना है। हालाँकि सदियों से बुद्धिमान पुरुष अपने
जीवन में महिलाओं के अद्वितीय महत्व को कभी नकारते नहीं रहे, लेकिन साथ ही, निरंकुश
पितृसत्ता और प्रच्छन्न स्त्री-द्वेष से भी नहीं बच पाए। यहाँ तक कि प्रकृति के अलिखित नियम
भी महिलाओं का भरपूर उपयोग करने के बाद उन्हें क्रूरतापूर्वक त्याग देते हैं।
कब तक सदियों पुराने पारंपरिक कष्टों को स्त्री द्वारा हल्के में लिया जाता रहेगा?
कोई नहीं जानता, यहाँ तक कि खुद औरत भी नहीं...
लेकिन, कभी-कभी अपवाद भी होते हैं...
कहानी में, एक मुख्य पात्र औरत के दुखों को चुनौती के रूप में लेता है, और न केवल उसके
शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक पीड़ा का समाधान करता है, बल्कि अप्रत्याशित रूप से
प्रेरणात्मक उत्कृष्टता के अगले स्तर तक पहुँच जाता है...
आखिरकार, उसकी अपनी एक विश्वास प्रणाली है, जो कहीं भी, कभी भी कुछ भी रच
सकती है...
यह न भूलें कि बुद्धिमान लोगों ने कहा है कि महिलाओं की यथास्थिति किसी भी समाज
और राष्ट्र का भाग्य तय करती है।
अपने लोकाचार और अहंकार से दूर रहें...
हमारी महिलाओं की यथास्थिति कभी न रुके...
हमारी महिलाएं हमेशा, हमेशा, हमेशा, हमेशा खेलती रहें... हमेशा...