ये उपन्यास आधुनिक विज्ञान की रूप रेखा के आधार पर काल्पनिक अवधारणा के आधार पर विषय -वस्तु तैयार की गई है। जहाँ पात्र गतिशीलता और स्थिरता का अनुभव एक साथ करते है ।जीवन परिकल्पना है या वास्तविकता अगर है तो पहले परिकल्पना ने वास्तविकता को जन्म दिया या वास्तविकता ने परिकल्पना को ? कल्पना और वास्तविक दुनिया में कोई अंतर मालूम नहीं पड़ता ।
जीवन के अस्तित्व को जानने की जद्दोजहद में जीवन से उठने वाले हर सवाल पात्र को बेईमानी से लगते है जैसे खाली मन का चढ़ाव और उतार सागर में उठती गिरती लहरे एक छोर से देखने पर आती हुई प्रतीत होती है दूसरे छोर से देखने पर जाती हुई प्रतीत होती है।भौतिक सीमा में बधे होने के कारण व्यक्ति एक साथ दोनों छोर का दृष्टा अवलोकन नहीं कर सकता ।जीवित व्यक्ति मृत्यु के बाद के सत्य को प्रमाणित नहीं कर सकता, मृत व्यक्ति जीवन को प्रमाणित नहीं कर सकता इसके लिए उस व्यक्ति का दोनों सिरे पर एक ही समय पर उपलब्ध होना आवश्यक है।चलते है एक ऐसे ही समय के जाल में उलझी रहस्य रोमांच और विज्ञानं के अद्धभुत प्रयोग से भरे सफर मे जहाँ काल्पनिक और वास्तविक दुनिया के मुहाने पर जिंदगी और मौत एक साथ रूबरू है ।
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