गुलराज टॉवर, जो मुंबई के गोरेगांव वेस्ट में स्थित है। बारिश के दिनों में आस-पास की सड़कों पर इतना कीचड़ फैल जाता है कि लोगों का सड़क पर चलना तक मुश्किल हो जाता है। गुलराज टॉवर से लेकर आस-पास के इमारतों में एक जाली बांधा गया है और ऊपर के मंजिलों में मौजूद लोग ऊपर से अपने पुराने कपड़े नीचे की ओर फेंकते हैं। गनीमत है, कि ढेर सारी कपड़ों के वजन से झुकी वह जाल वैसे की वैसे ही टिकी हुई है और अगर वो जाल किसी प्रकार से फट गई, तो सारे कपड़ों की ढेर बीचों-बीच सड़क पर ही बिखर जायेगी। वैसे तो तंग गली में मौजूद यह बहुमंजिला टॉवर काफी हद तक अच्छे लोगों से भरा हुआ है और इसी बहुमंजिला टॉवर के कमरा नंबर - 2012 में रहती हैं एक खूबसूरत हसीना। यूं तो एक आम कहावत बेहद प्रचलित है कि चेहरा इंसान की नीयत का दर्पण होता है, लेकिन कभी-कभी यही चेहरा इंसान की नीयत की झूठी अक्स दिखा देती है। चेहरे से मासूम-सी दिखने वाली वो हसीना नीयत की बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी, क्योंकि वह अपनी खूबसूरती से और रसीले बातों से लोगों को लूटने का काम करती थी, उनकी जिंदगी बर्बाद करने का काम करती थी। खैर, उस हसीना के बारे में विस्तार से जानने के लिए आपको पहले मेरी कहानी पढ़नी होगी। मेरी संघर्ष की वो कहानी, जो कहीं न कहीं आपके दिल को झकझोर देंगी और सोचने पर बाध्य कर देंगी कि कैसे एक 75 प्रतिशत विकलांग व्यक्ति इतनी चुनौतियों का सामना कर सकता है। मैं कौन था ? कहां से आया था और अपने घर से 41 किलोमीटर दूर जमशेदपुर शहर में कैसे अकेले फुटपाथ पर रहकर रातें गुजारा करता था ? वो खूबसूरत हसीना कौन थी ? वो कैसे लोगों को ठगने का काम करती थी ? मेरी पहली मुंबई यात्रा कैसी थी ? उस हसीना से मेरी मुलाकात कैसे और किन परिस्थितियों में हुई
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