इंसान अपने जीवन में अनेक किरदार निभाता है। एक स्त्री एक ही समय में जितने किरदार निभाती है, वो भूल जाती है कि उसकी असली पहचान वह स्त्रीत्व है जो उसके अंदर निहित है और अपने आप से दूर हो जाती है। फिर समय आता है जब उसे एहसास होता है अपने स्त्री होने का, अपने आप से जुदा होने का। ये वो समय है जहाँ वो अपने स्त्री होने के किरदार और बाकि किरदारों के बीच में सामंजस्य बनाती है, जान लगा देती है। तभी तो हम "नायिका" कहते हैँ। इंसान होते हुए भी देवी की उपाधि से जो सम्मानित है।
सिर्फ जीत से मतलब नहीं, संघर्ष ही उसकी असली कहानी है। ऐसी ही कुछ कहानियाँ और कविताएं "नायिका " के जीवन को दर्शाती हैँ। स्त्री के विशाल चरित्र को प्रस्तुत करती है "नायिका"।