रात का सन्नाटा था। सड़कों पर इक्का-दुक्का गाड़ियाँ गुज़र रही थीं, पर उसके मन में सन्नाटे की गूँज ज़्यादा तेज़ थी। एक वक़्त था जब उसकी ज़िंदगी में एक हलचल हुआ करती थी, खुशियों की, उम्मीदों की, प्यार की। पर अब, वही हलचल यादों की गूँज बनकर उसे रोज़ सताती थी।
नीलेश, एक नाम, जो दुनिया के लिए शायद एक आम इंसान था, पर अपनी ही दुनिया में वो एक अधूरी कहानी बन गया था। उसके पास शब्द थे, कहानियाँ थीं, पर उसकी अपनी कहानी का सुखद अंत अब कहीं खो गया था।
वह बालकनी में खड़ा चाँद को निहार रहा था। उसे याद आया, निधि को चाँद बहुत पसंद था। जब भी वो आसमान में चमकता था, उसकी आँखें भी उसी तरह चमक उठती थीं। पर अब नीलेश की आँखों में बस इंतज़ार बचा था, एक ऐसा इंतज़ार जिसका कोई अंत नहीं था।
उसने कभी सोचा भी नहीं था कि बचपन की मासूमियत से शुरू हुआ वो रिश्ता एक दिन उसकी सबसे बड़ी परीक्षा बन जाएगा। उसने गलतियाँ कीं, अपना प्यार खोया, लेकिन क्या वो फिर से सब कुछ ठीक कर पाएगा? या कहानी उस मोड़ पर पहुँच गई थी जहाँ से वापस लौटना नामुमकिन था? क्या नीलेश की कहानी में कोई मोड़ आएगा, या ये बस एक अधूरी कहानी बनकर रह जाएगी?
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