‘प्रीत बसेरा’ कवयित्री का दूसरा काव्य संग्रह है। पहले काव्य संग्रह ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ की सफलता के बाद ‘प्रीत बसेरा’ में वे प्रेम में रची-पगी सी कविताएँ लाईं हैं। प्रेम के सभी रूपों संयोग-वियोग, अनुराग-विराग, उल्लास-वेदना पर ने यहाँ अभिव्यक्ति पाई है। प्रेम में भीगी,कभी आह्लाद से रसीली तो कवि आँसुओं से सीली, आर्द्र मन से उपजी हुई कविताएँ हैं। उसी रस से सराबोर करने हेतु ये मधुर-मृदु कविताएँ आपके समक्ष पुस्तक रूप में प्रस्तुत हैं। ‘प्रीत बसेरा’ के चार सर्गों ‘प्रेरणा’, ‘प्रकृति’, ‘प्रीति’ और ‘प्रतीति’ में संबंधों, सुषमा, शृंगार और स्त्रीमन की कविताएँ हैं। साधारणत: प्रत्येक साहित्यकार काव्य के द्वारा ही अपनी भावनाओं को शब्द देता है और इसी कड़ी में कवयित्री डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने भी काव्य विधा को आगे बढ़ाया है। डॉ. आरती के काव्य संग्रह से गुजरते हुए महसूस किया जा सकता है कि उनकी कविताओं में जहाँ एक ओर परिवार के प्रति समर्पण के भाव हैं, वहीं दूसरी ओर रोजगार के सिलसिले में अपने देश, समाज, परिवार, सखी-सहेलियों से दूर होने की पीड़ा भी है। इस काव्य संग्रह में अस्मिता, अहमियत, मर्यादा, त्याग, समर्पण भाव को लेकर सरल शब्दों में कविताएँ रची गई हैं जिससे कोई भी पाठक इन्हें आसानी से आत्मसात कर सकता है। बिम्बों और अलंकारों से कविता मुक्त है। कविताओं की भाषा, शिल्प और शैली भी जटिल नहीं है। भावों की सघनता होने के कारण इन कविताओं को पढ़कर जितना महसूस किया जाएगा उतना ही इन कविताओं की तह तक पहुँचा जा सकता है। सामान्यतः कविता का पाठक केवल शब्दों को पढ़कर आनंदित होना चाहता है किंतु शब्दों के बीच जो फासला होता है कविता वहीं ठहरी होती है। जो इस अंतराल को समझ सकता है उन्हें इस पुस्तक को पढ़कर अच्छा लगेगा।