स्मृतियों की बगिया में जो संस्मरण के सुमन, सुवासित हुए हैं उन्होंने दीये का शाश्वत प्रकाश बनकर सदैव मेरी साहित्यिक यात्रा का पथ प्रशस्त किया है। स्मृतियों के ये दीपक पाठक को संवेदना से भर देंगे। कभी हंसाएंगे, कभी गुदगुदाऐंगे , तो कभी करुणा का झरना बनकर आंखों की कोर से झरेंगे। मेरे पति वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश गुप्त जी ने इस पुस्तक में 10 संस्मरण ही शामिल किए जाने की तैयारी कर दी थी पर, क्या पता था कि उनके कीर्ति शेष हो जाने पर वही इस संस्मरण संग्रह का हिस्सा बनेंगे। समय कभी निष्ठुर बनता है तो ,कभी बलवान बन कर मनमानी करता है। खैर उनकी अंतिम यादों को वे कोविड के दिन रात गुप्त जी के साथ शीर्षक से संजोया है
राहों के दीये बनकर कभी साहित्यकारों ने मुझे रास्ता दिखाया तो कभी मेरे विद्यालय के बच्चों ने तो कभी शिक्षकों ने। इतना तो तय है कि ये संस्मरण पाठक के मानस पटल को उल्लास से भर कर हृदय में जगह बनाएंगे। प्रत्येक संस्मरण का ताना-बाना जीवन की घटनाओं से बुना गया है जो पाठक के साथ तादात्म्य स्थापित करेगा। उसे कथा रस का आनंद भी मिलेगा। मेरा यह अटल विश्वास कितना सफल होता है यह तो पाठक ही बतलाएंगे। अब यह आपके हाथों सौंपती हूं, अपना प्रथम संस्मरण संग्रह "राहों के दीये-"----