वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी जिन रास्तों से गुज़रती है वह हर पल एक कहानी से जुड़ते चले जाते हैं अनुभवों की किताब में। जिन्हें पलट कर फिर से पढ़ना] सुनाना या जीना हमेशा अच्छा लगता है। आइने में रोज देखने के बाद भी अपने चेहरे पर उभरते बदलाव कहां दिखाई पड़ते हैं। ये तो भला हो एलबम में टंकी तस्वीरों का जो चीख-चीख कर बता देतीं हैं कि उम्र चहरे पर कितनी नई लकीरें खींच कर चली गई है। बालों में चांदी भर गई है और समय के ताप में तपा कर समझ को कुंदन कर गई है। बचपन में गिरने या खो जाने के डर से उंगली पकड़ कर चलने वालों की उंगली जब उन्हें गिरने या खो जाने के डर से पकड़नी पड़ती है तो वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी का सफर बिना एहसास दिलाए बीते हुए हर पल एहसास दिला जाता है। कितना आश्चर्यजनक है कि बचपन बच्चा नहीं रहना चाहता और बड़े होने के बाद सभी बचपन की ओर हसरत भरी निगाहों से देखते हैं। सोच कर देखें तो हर रोज़ ऐसा क्या नया था? बस सुबह शाम में और रात सुबह में ही तो बदलती थी रोज, जिसने पूरा का पूरा बदल दिया हम सबको!