कुछ एक पुर्ज़े तो सबके ढ़ीले होते हैं... इन्ही ढ़ीले पुर्ज़ों का शोर इंसान को ज़िन्दगी जीने का असल मक़सद देता है... मुझे भी हर आती साँस मैं ये शोर सुनाई देता है... कभी सुर्ख तो कभी सब्ज़.. तो कभी खुदरंग...
दिल के दरीचे खोल कर सुनोगे तो तुम्हें भी हर आती साँस मे ये सुनाई देगा... जब एहसास बोलते हैं तो कानों मे खुद बा खुद शहद घुलने लगता है... ऐसा होगा.. तब एक लम्हे मे समझ जाओगे के तुम्हारी ज़िन्दगी का मक़सद आख़िरकार है क्या... वहां पहुँच जाओगे जहाँ पहुंचने की ख्वाहिश तुम्हें हमेशा से थी... वहां जहाँ पहुंच कर कहीं पहुंचना नहीं चाहोगे...
अंत मे "जौन" से मुआफी के साथ जौन के लिए एक शेर...
"कर दे मुझे कुछ ऐसे रिहा अपने आप से
हर वहम से आज़ाद.. के मैं इश्क़ कर सकूँ
काश तुम्हारे बाद भी मैं... इश्क़ कर सकूँ !!"
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