‘षड्गंधा’ संग्रह में समेटी गई कविताएँ भिन्न-भिन्न अवसरों पर, भाँति-भाँति की मन:स्थिति में और नाना प्रकार की भावनाओं की स्याही को कलम में भरकर पन्नों पर उतारी गई हैं। कभी यह कलम वेदना की ऊष्मा से संचालित हुई है तो कभी हर्षातिरेक की ऊर्जा से संचारित। विषयों की विविधता को ध्यान में लाते हुए इनका वर्गीकरण मैंने छ: खंडों में किया है।
प्रथम सर्ग ‘मौलश्री की गंध’ भक्ति रस की कविताओं की श्रद्धा-पल्लवित बगिया है तो द्वितीय सर्ग ‘सर्वज्जय की गंध’ स्वदेश और प्रवासी मन की सुरभि से प्लावित है। तृतीय सर्ग ‘अमलतास की गंध’ भारतीय संस्कृति, परंपराओं और त्योहारों से आच्छादित है तो चतुर्थ सर्ग ‘कचनार की गंध’ नारी मन के भाव-स्वभाव का सौरभ बिखेरे हुए है। पंचम सर्ग ‘रत्नज्योति की गंध’ स्वाभिमान और स्मृतियों से सुवासित है तो षष्ठम सर्ग ‘बनफशा की गंध’ प्रकृति की सुरम्यता की खुशबू से सराबोर है। अंत में षड़्गंध वाटिका खंड में ॐ आकृति विधा में रचित छ: कविताओं का समावेश किया गया है जो पूर्व के छ: सर्गों में समाहित भिन्न-भिन्न भावों को दर्शाती हैं।